देश इस वीडियो को जरूर देखे जो संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के अंदर बनाया गया है। इस वीडियो को बनाने वाले हैं आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता। जो उन्होंने मंगलवार को राज्यसभा में हंगामे के बीच बनाया। साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह से सांसद महोदय घूम-घूम कर वीडियो बना रहे हैं।
ऐसे वीडियो बनाने की मंशा को आसानी से समझा जा सकता है। आम तौर पर लोग इस तरह के वीडियो बनाया करते हैं, जिसमें ये दिखाने की इच्छा हावी रहती है कि वे इस विशेष मौके पर मौजूद रहे और अपनी तरफ से उन्होंने इसे बेहद खास बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
इस वीडियो को देख कर ही देश समझ सकता है –
क्यों देश की संसद पर से लोगों का विश्वास खत्म हो रहा है?
क्या किसी साजिश के तहत संसद के महत्व को हल्का किया जा रहा है?
देश भर से जीत कर लोकतंत्र के पावन मंदिर में पहुंचे लोगों की मर्यादा को क्यों वो महत्व नहीं मिल रहा, जिसके वे हमेशा से हकदार रहे हैं?
संसद में जब किसी मुद्दे पर बहस हो गई तब भी सड़क पर उबाल क्यों कायम रहता है?
जबकि संवैधानिक व्यवस्था के तहत संसद देश में बहस की सबसे प्रतिष्ठित जगह है।
विशेषकर राज्यसभा, जहां सभी राजनैतिक पार्टियां ऐसे लोगों को भेजती हैं जिन्होंने अपने दम पर किसी क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है।
इसे इस तरह से समझा जा सकता है, राज्यसभा एक ऐसी जगह है जहां देश के जाने माने बुद्धिजीवी लोग बैठते हैं। जो देशहित से जुड़े गंभीर मसलों पर बड़ी ही गंभीरता से चर्चा करते हैं। वहां होने वाली चर्चा का सम्मान, वहां बैठे लोगों की पहचान से जुड़ा होता है। देश मानता है कि बहुत ही सक्षम लोगों ने विषय पर चर्चा कर ली है, मतलब इससे जो भी समाधान सामने आ रहा है वो सबसे अच्छा है, और सच्चे शब्दों में देश की सोच को सामने रखने वाला है।
इसी की बुनियाद पर खड़ा रहा है हमारे देश का दुनिया भर में सम्मानित लोकतंत्र।
लेकिन ये वीडियो दिखाता है कि वीडियो बनाने वाले सांसद बस ये दिखाना चाहते हैं कि उनके लोग देखें कि उन्होंने कैसे उच्च सदन में उच्च कोटि का उत्पात मचा दिया।
इसकी जगह वे अगर किसान कानून से संबंधित अपनी स्पष्ट सोच रखते तो ज्यादा अच्छा होता। ऐसी स्थिति में उन्हें वीडियो बनाने का कष्ट भी नहीं उठाना पड़ता। क्योंकि सरकार ने इसके लिए बकायदा राज्य सभा टीवी पर लाइव प्रसारण की व्यवस्था कर रखी है। लेकिन विपक्ष के राज्यसभा सदस्य बस हंगामे की मंशा से ही सदन गए थे। वे उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के बार-बार निवेदन के बाद भी शांत नहीं हो रहे थे। वे लोग उसी प्रश्नकाल को बाधित कर रहे थे जिसकी मांग खुद विपक्ष करता रहा है। और तो और, इसके नहीं होने को लोकतंत्र की हत्या तक बता चुका है।
राज्यसभा के सभापति की बात को बिल्कुल ही अनसुना करते रहे सारे के सारे विपक्ष के सांसद। वे बार-बार कहते रहे कि किसानों के मसले पर बुधवार को अपनी बात रखी जा सकती है। लेकिन सारे लोगों ने वाकआउट कर दिया। और फिर बाहर फेक न्यूज का माहौल बनता दिखा कि संसद के अंदर किसान कानून पर चर्चा ही नहीं हुई। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए उपराष्ट्रपति को ये कहना पड़ा कि ये गलत बात देश के लोगों को बताई जा रही है। कृषि बिल पर राज्यसभा के अंदर पूरे चार घंटे चर्चा हो चुकी है। जिसका पूरा रिकॉर्ड है, किसने क्या कहा, इसका पूरा उल्लेख है। उपराष्ट्रपति महोदय ने ये भी याद दिलाया कि वोटिंग के दौरान कैसे विपक्षी सांसदों ने उच्च सदन की मर्यादा को तार-तार कर दिया था। जाहिर है ऐसी बातों से ही देश में भ्रम की स्थिति बनती है और माहौल खराब होता है। और सबसे बड़ी बात संसद की गरिमा कम होती है।
देश में जारी तथाकथित किसान आंदोलन के दौरान भी यही बात देखने को मिल रही है। मानो संसद में हुई चर्चा का कोई महत्व ही नहीं। पूरी की पूरी संवैधानिक व्यवस्था बेकार है। कहीं से भी कुछ लोग आकर कहने लगे जाएं कि उनसे जब तक चर्चा नहीं की जाएगी तो बात नहीं मानी जाएगी। जरा सोचिए कैसी अराजकता वाली स्थिति बन जाएगी?
सांसदों का क्या महत्व रह जाएगा?
संसद और संविधान का क्या मोल रह जाएगा?
एक बात और समझिए, आम आदमी पार्टी ने जिस बड़े बिजनेसमैन, सुशील गुप्ता को बेहतर बहस की उम्मीद के साथ, विशेष व्यवस्था के तहत संसद भेजा है, उनके बदले में जिनको भेजने की बात उन दिनों चल रही थी, उनमें दो प्रमुख नाम पत्रकार आशुतोष और कवि कुमार विश्वास का रहा था। बताया तो यही जाता है कि कुमार विश्वास ने इसी बात पर नाराज होकर पार्टी भी छोड़ दी थी।