#AAP ने तो दिल्ली की पहचान बदल दी!
‘दिल वालों की है दिल्ली’..दस साल पहले दिल्ली वालों की पहचान की पंच लाइन यही हुआ करती थी. लेकिन अब..‘कटोरा वालों की दिल्ली’ हो गई. इसे बारीकी से समझना होगा. समझना होगा..कैसे जब राजनीति बदलती है तो बहुत कुछ बदल जाता है.
दिल्ली वाले..मतलब एकदम बिंदास टाइप लोग. मिलजुल कर रहने वाले, शेयरिंग और केयररिंग वाले, अच्छा खाने-खिलाने वाले लोग. राजधानी के सरल और समृद्ध जीवन का असर दिल्ली वालों के रहन-सहन, उनके बात-व्यवहार में बेहतर तरीके से झलकता था. लेकिन पिछले दस सालों में राजनीति बदली तो बहत कुछ बदल गया. राजनीति का आधार मुफ्त की योजनाएं बन गईं, जो पहले विकास और बेहतर लाइफ हुआ करती थी. आम आदमी पार्टी ने राजनीति का आधार बदला तो इसके साथ ही दिल्ली वालों की पहचान बिगड़ती चली गई. आज की तारीख में देश में चर्चा तो इसी बात को लेकर है कि दिल्ली ‘कटोरा वालों’ की बन गई है. ऐसा लग रहा है मानों दिल्ली में हर कोई कटोरा लिए खड़ा है. जिसे देखो वही कुछ न कुछ दिल्ली वालों के कटोरे में डालने की ही बात कर रहा है. दिल्ली की सियासत में जो शुरुआत आम आदमी पार्टी ने की. अब हर राजनीतिक दलों की मजबूरी बन गई है. दलों को लगता है कि दिल्ली वाले किसी भी और बात को अहमियत नहीं देने जा रहे. वो टकटकी लगाए मुफ्त की योजनाओं की ओर देख रहे हैं. ऐसे में वो करें भी तो क्या करें. उन्हें लगता है कि दिल्ली वाले इतने लालची हो गए हैं..जब तक उन्हें मुफ्त वाली योजनाओं के बारे में नहीं बताया जाए..वो आपकी आगे की बात तो सुनेंगे हीं नहीं.
चुनावी विज्ञापनों ने तो मामला और भी बिगाड़ रखा है. ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रीय राजधानी के हर घर में मुफ्त की योजनाओं को लेकर जोड़-घटाव चल रहा है. किस पार्टी की सत्ता आने पर दिल्ली वालों को क्या-क्या मिलने वाला है? कौन कितने पैसे दे रहा है? विज्ञापनों में दिखाए जा रहे दिल्ली वाले गरीब, लाचार होने के साथ-साथ अव्वल दर्जे के लालची हैं. किसे वोट देना है वो पैसों के कैलकुलेशन के बाद ही तय करने वाले हैं. कुल मिलाकर..आम आदमी पार्टी की ‘रेवड़ी’ राजनीति की वजह से दिल्ली वालों की पहचान ‘कटोरा छाप’ बन कर रह गई है!