दिल्ली पुलिस के सिपाही किरण पाल की मौत एक अलार्म की तरह है जो व्यवस्था संभालने वालों को सावधान कर रही है..संभल जाएं नहीं तो और भी बुरे दिन आने वाले हैं! साफ दिखता है दिल्ली पुलिस की कार्यशैली कितनी भ्रष्ट हो चुकी है. अपराधियों पर अंकुश लगाने का मैकेनिज्म कब का खत्म हो चुका है. उपर से लेकर नीचे तक सभी का फोकस सिर्फ और सिर्फ वसूली पर दिखता है. एक दौर था जब आप नीचे लेवल पर सिपाहियों, हेड कॉन्स्टेबल या फिर एसएचओ तक के लोगों की शिकायत उपर के किसी अधिकारी से करते थे तो तुरंत एक्शन होता था. लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिखता है. इसकी जो एक बड़ी वजह समझ आती है वो है कलेक्शन का दबाव. चूंकि कलेक्शन की कूंजी मुख्य रूप से नीचे लेवल के कर्मचारियों या अधिकारियों के पास होती है. इस वजह से उपर वाले ज्यादा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं दिखते.
इस वजह से भी जब कहीं रेहड़ी पटरी वाले अपना कब्जा जमाना शुरू करते हैं तो लोकल पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करती. बल्कि कलेक्शन पर काम शुरू हो जाता है. जितना ज्यादा अवैध दुकान लगेंगे उतना ही ज्यादा कलेक्शन शुरू हो जाएगा. अगर शुरू में ही रोक दिया जाए तो मामला आगे बढ़े ही नहीं. लेकिन ऐसा नहीं होता है. रेहरी पटरी वालों की संख्या बढ़ती ही जाती है. जैसे-जैसे उनकी संख्या बढ़ती जाती है, वो बेलगाम होते चले जाते हैं.
कालका जी के गोविन्दपुरी में भी यही हुआ. स्थानीय लोग बता रहे हैं कि जिस जगह पर सिपाही किरण पाल को चाकू मारा गया उस जगह पर रेहड़ी पटरी वालों की जमावड़ा देर रात तक लगा रहता है. लोगों के लिए उधर से गुजरना मुश्किल रहता है. जाहिर सी बात है वहां रेहड़ी पटरी वाले बिना पुलिस के साथ सेटिंग के जम ही नहीं सकते. पुलिस न्यूट्रल हो जाएगी तो बदमाश प्रवृत्ति के लोगों का मनोबल बढ़ेगा ही. किरण पाल का पूछताछ करना बदमाशों को इतना नागवार गुजरा, उहोंने उसी पर वक्त सिपाही किरण पाल को चाकू से अटैक कर दिया. उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया. कहना गलत नहीं होगा दिल्ली पुलिस के तथाकथित वसूली वाली भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ गया सिपाही किरण पाल..!