सचिन वाजे को विशिष्ट पुलिस सेवा पदक क्यों नहीं?
बेशक बात बड़ी होकर पहली बार सामने आ रही है कि मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट, असिस्टेंट इंस्पेक्टर सचिन वाजे को महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख की तरफ से 100 करोड़ की उगाही का टारगेट दिया गया था। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर राजधानी दिल्ली के सियासी गलियारों में शोर मच गया। लेकिन हैरानी होती है कि इस उगाही वाली बात को लेकर इतना ड्रामा क्यों हो रहा है? शायद ही देश का ऐसा कोई बड़ा थाना होगा, जिसके थानेदार को उगाही का टारगेट नहीं मिला हो? कहीं कम, तो कहीं ज्यादा, थाना किस जगह पर है इस पर निर्भर करता है। और ये बात अभी जो भी मुख्यमंत्री हैं या फिर जो कम से कम मुख्यमंत्री रह चुके हैं, उनकी जानकारी में नहीं हो, ये बात नहीं मानी जा सकती।
मुंबई में बात बिगड़ने की वजह सत्ता में बैठे लोगों के द्वारा सिरे से इस बात को खारिज करना ही बना है। जिस तरह से इस बात को लेकर पुलिस कमिश्नर की पद की गरिमा को कलंकित करने का सियासी कुचक्र रचा जाने लगा, सारे फसाद की जड़ पुलिस विभाग को बताया जाने लगा, जाहिर है ये बात किसी भी पुलिस अधिकारी को नागवार गुजरेगी। अब वो प्रतिक्रिया कैसी देगा, ये उसकी सहनशीलता पर निर्भर करता है। क्योंकि बनी हुई व्यवस्था में ऊंच-नीच का जिम्मेदार बस एक हिस्सा कैसे हो सकता है? और इसी की प्रतिक्रिया है जो कुछ भी मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने किया। जिस तरह से, जिस समय में उनका ट्रांसफर किया गया, अगर वे इस खुलासे को सामने नहीं लाते तो, सत्ता का सिस्टम की तरफ से एनकाउंटर नहीं करते, तो इस स्थापित कलंक के साथ उन्हें जीवन भर चलना पड़ता।
पुलिस विभाग के माध्यम से पैसा वसूली का स्थापित सिस्टम देश की सुरक्षा तंत्र का सबसे कमजोर पक्ष है। ये एक ऐसे घुन की तरह है जो व्यवस्था को अंदर से खोखला करती रहती है। दिल्ली पुलिस हो, मुंबई पुलिस हो या फिर कहीं की भी पुलिस, सबको इसी सिस्टम के तहत काम करना ही पड़ता है। इसमें कम ज्यादा का संबंध थोड़ा बहुत पुलिस अधिकारी की ईमानदारी पर जरूर निर्भर करता है। कम ईमानदार, ज्यादा वसूली। ज्यादा ईमानदार, कम वसूली। यही चलन है। कोई भी इससे पूरी तरह इंकार करके व्यवस्था में सही तरीके से काम नहीं कर सकता है। इसे मानते हुए ही इस मसले पर बात होनी चाहिए।
और इस लिहाज से तो अनिल वाजे को विशिष्ट पुलिस सेवा मेडल से सम्मानित किया जाना चाहिए। उसने तो देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी से वसूली करने की हिम्मत दिखाई। काम तो उसने विभाग की स्थापित समानांतर व्यवस्था के तहत ही किया। और काम में जोखिम उठाने वालों को सम्मानित करने की परंपरा तो पुलिस विभाग में रही ही है।
मतलब या तो इस व्यवस्था को ही समाप्त करने की दिशा में बात की जाए। या फिर इसे संस्थागत रूप ही दे दिया जाए। आज के हाईपर इंफॉर्मेशन एज में इस दिशा में गंभीर चर्चा और बड़े बदलाव की आवश्यकता है। इस पर सियासी ड्रामेबाजी बंद होनी चाहिए।