विपक्ष की सार्थक भूमिका निभा रहा था जनसंघ – त्रेहन
साल 1970-71 की बात है, उस समय दिल्ली के कनॉट प्लेस में रीगल बिल्डिंग के पास, आज जहां खादी का बड़ा शोरूम है वहां पर देश के अलग अलग प्रांतों से जनसंघ के जत्थे आया करते थे, वे वहां से संसद मार्ग की तरफ बांग्लादेश के समर्थन में प्रदर्शन करते हुए बढ़ा करते थे। उसी रास्ते पर आगे उन्हें रोकते हुए दिल्ली पुलिस गिरफ्तार कर लिया करती थी। दरअसल उस समय जनसंघ की तरफ से भारत सरकार से मांग की जा रही थी कि वो बांग्लादेश की स्थाई सरकार का समर्थन करे। आरएसएस के लोग इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। पचास के दशक से दिल्ली के आरएसएस में सक्रीय भूमिका निभा रहे ओम प्रकाश त्रेहन बताते हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन में गिरफ्तारी देने की बात बता रहे हैं तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं। उस दौर में बड़ी संख्या में जनसंघ और आरएसएस के लोगों ने गिरफ्तारी दी।
इस बेवजह की विवाद की जगह विपक्ष इस घटना से एक बहुत ही अच्छी सीख ले सकता है। दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बांग्लादेश की आजादी के लिए आगे बढ़कर काम कर रही थीं। अमेरिका उनकी इस भूमिका से खुश नहीं था, वो नहीं चाहता था कि भारत पाकिस्तान के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करे। ऐसे में ये आवश्यक था कि दुनिया के सामने भारत अपने हर एक्शन के लिए कोई ठोस वजह बताने की स्थिति में रहे। बांग्लादेश की स्थाई सरकार को सहयोग देने की मांग को लेकर जनसंघ के आंदोलन से सरकार को मदद मिल रही थी। सरकार कह पा रही थी कि हमें ऐसा करना पड़ रहा है क्योंकि विपक्ष इसके लिए आवाज उठा रहा है।
उस समय जनसंघ की कमान अटल बिहारी के पास थी। जनसंघ और आरएसएस की स्पष्ट राय थी कि पाकिस्तान का दो टूकड़े में बंटना देश के हित में है। इंदिरा गांधी की सरकार अगर इस दिशा में काम कर रही है तो उसे पूरा सहयोग दिया जाए। और इस वजह से विपक्ष की सार्थक भूमिका निभाते हुए सारा कार्यक्रम एक तरह से सरकार को मजबूती देने के लिए चलाया जा रहा था।
आज इस तरह के सहयोग की बात विपक्ष सोच ही नहीं सकता। और यही पीएम मोदी के बांग्लादेश वाले बयान के बाद हो रहे इस हंगामें की बड़ी वजह है।
ओम प्रकाश त्रेहन उस दौर को याद करते हुए अपना एक निजी अनुभव भी शेयर करते हुए बताते हैं कि उस समय उनका दफ्तर कनॉट प्लेस में ही शंकर मार्केट के सामने हुआ करता था। एक दिन जानकारी मिली कि पाकिस्तान के विरोध में पुतला दहन का कार्यक्रम है, वे भी रीगल के पास वाले मैदान में पहुंचे तो वहां उस समय तक कोई नहीं पहुंचा था। वे उधेड़बुन में खड़े थे कि तभी एक सीडी नंबर वाली चमचमाती कार आकर रुकी, उसमें से सूटबूट पहने एक आदमी निकला। उससे बात हुई तो पता चला कि वो बांग्लादेश की स्थाई सरकार का प्रतिनिधि है और पुतला दहन कार्यक्रम करने ही आया है। फिर दोनों ने मिलकर कार की डिक्की से पुतला निकाल कर कार्यक्रम की तैयारी शुरू की। धीरे धीरे भीड़ भी इकट्ठी हो गई और पुतला दहन संपन्न हुआ।
मतलब इस तरह से बांग्लादेश के समर्थन में आरएसएस या जनसंघ की भूमिका पर सवाल उठाना गलत है। देशहित में सरकार कोई निर्णय लेती है तो उसका समर्थन करना विपक्ष की भूमिका को नए आयाम देता है। मौजूदा दौर में इस बात की कमी खलती है।