MCD के चुनाव पहले करवा दीजिए..प्लीज!
महोदय से अनुरोध है कि लोकहित को लोकतांत्रिक व्यवस्था में सर्वोपरि मानते हुए दिल्ली एमसीडी का चुनाव जल्दी करवा दिया जाए। क्योंकि दिल्ली के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। मौजूदा व्यवस्था के तहत दिल्ली नगर निगम के चुनाव अगले साल, यानी 2022 के अप्रैल महीने के आखिरी में होंगे। तय मानिए आगे का ये एक साल का दिल्ली वालों के लिए मुसीबतों से भरा है। वैसे तो दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच की सियासी खींचतान पुरानी है, लेकिन जब से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता में वापसी की है तब से हालात और भी बिगड़ते जा रहे हैं।
सबसे बड़ी वजह पैसे को लेकर जारी खींचतान है। बीजेपी शासित एमसीडी का आरोप है कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार एमसीडी के पूरे पैसे नहीं दे रही है। जबकि आम आदमी पार्टी लगातार कहती रही है कि एमसीडी में पैसे की कमी की सबसे बड़ी वजह भ्रष्टाचार है।
इन दोनों की लड़ाई हाई कोर्ट भी जा चुकी है। दिल्ली सरकार और एमसीडी, दोनों को ही, निगम कर्मचारियों को सैलरी नहीं देने के मसले पर कोर्ट फटकार लगा चुका है। लेकिन समाधान निकलता नहीं दिख रहा। अभी पिछले वुधवार को ही हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को सीधा निर्देश दिया है कि वो एमसीडी को करीब 900 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान इसी वित्त में ही करे। ये रकम बेसिक टैक्स एसेसमेंट के तहत एमसीडी को मिलना था। जिसका इस्तेमाल एमसीडी अपने कर्मचारियों को सैलरी देने और अन्य खर्चे के लिए करती है।
अब तक दिल्ली की जनता समझ चुकी है कि इस सियासी लड़ाई का समाधान कोर्ट से निकलना असंभव सा है। इलाज यही समझ में आ रहा है कि जल्द से जल्द चुनाव करवा दिए जाएं। तभी हालात बदलेंगे। बार बार अपनी सैलरी के लिए एमसीडी के डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों को काम रोकना पड़ता है। कोरोना महामारी के इस संकट काल में हड़ताल पर बैठे डॉक्टरों की तस्वीरों ने दुनिया भर में दिल्ली को शर्मसार किया है। यही हालात सफाई कर्मचारियों के भी हैं। महामारी के समय में उन्हें साफ सफाई का काम रोकना पड़ जाता है। नहीं चाहते हुए भी इन कर्मचारियों को ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं। एक परंपरा सी बन गई है, हड़ताल होगी तभी सैलरी मिलेगी। ऐसे में कोई करे भी तो क्या करे? क्योंकि सबका एक परिवार है, महानगर में रहने के अपने खर्चे हैं, जब चार-पांच महीने से सैलरी नहीं आएगी तो कोई कैसे अपने परिवार की देखभाल कर सकेगा?
ये बात तय सी लगने लगी है कि एमसीडी के पास पैसे नहीं। वो अपने कर्मचारियों का वेतन और पेंशन देने में पूरी तरह असमर्थ है। किसी भी तरह के विकास के काम तो दूर की बात है। मुखर्जी नगर, नेहरू विहार की सड़कें बदहाल स्थिति में हैं। सालों से उनके निर्माण का नंबर ही नहीं आ रहा है। यही स्थित कमोवेश दिल्ली की तमाम एमसीडी की सड़कों और नालियों की है। नेहरू विहार में एक मुख्य सड़क के बीचोबीच नाली धंस गई है, गुजरने वालों के लिए ये काफी खतरनाक है। बावजूद इसके कोई सुनने और देखने तक को तैयार नहीं। बस एक ही बात बताई जाती है कि पैसे नहीं हैं।
हद तो तब हो गई जब नॉर्थ एमसीडी के टीचर अपनी पांच महीने की बकाया सैलरी का मसला लेकर मेयर आवास पर धरना देने पहुंचे, उनके पहुंचने से पहले ही मेयर साहब निकल लिए। मजबूरी में आंदोलनकारी शिक्षकों को अपना धरना खत्म करना पड़ा।
पैसे है नहीं, कोई काम होना है नहीं, साल भर सिर्फ चुनाव का इंतजार। अब ऐसे हालात में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रहने वाले लोगों की पीड़ा को समझते हुए तत्काल नगर निगम के चुनाव करवाने पर विचार किया जाए। क्योंकि मौजूदा हालात में चुनाव ही समाधान नजर आता है। बहुत संभव है कि चुनाव में अगर आम आदमी पार्टी जीत जाती है तो एमसीडी पर छाया धनसंकट खत्म हो जाए। आप पार्टी एमसीडी को भ्रष्टाचार मुक्त बनाकर फिर से धनवान बना दे। और अगर बीजेपी जीत जाती है तो शायद जनता की मर्जी मानकर दिल्ली सरकार के तेवर थोड़े ढ़ीले पर जाएं। केंद्र की बीजेपी सरकार का भी मनोबल बढ़े और एमसीडी का भला करने की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास हो।
कुल मिलाकर कहा जाए तो चुनाव के बाद ही दिल्ली की बेहतरी संभव है।
आपका
आम दिल्ली वासी