दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात के सूरत शहर में रोड शो करते दिखे। आम आदमी पार्टी ने गुजरात के लोकल बॉडी इलेक्शन के दौरान, विशेषकर सूरत में चौंकाने वाले नतीजे हासिल किए। पार्टी ने 27 सीटें जीत कर सब को हैरान कर दिया। हालांकि सूरत की कुल 120 सीटों में से 93 सीटें बीजेपी ने हासिल की। ओवरऑल चुनाव की चैंपियन बीजेपी ही रही। चौंकाया तो सिर्फ सूरत के चुनाव परिणाम ने, जहां इस बार कांग्रेस शून्य पर रही। आम आदमी पार्टी जैसी एक नई राजनीतिक पार्टी के लिए बीजेपी के गढ़ में इतनी सीटें जीत लेना, गौरव की बात है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इस जीत के पीछे की कहानी तो कुछ और ही कहती है। दरअसल ये किसी पार्टी विशेष की जीत नहीं, बल्कि किसी जाति विशेष की जीत है।
पाटीदारों के आरक्षण की मांग पर हुआ हंगामा सभी को याद होगा, आंदोलन से उभरे हार्दिक पटेल काफी सुर्खियों में रहे थे। लेकिन बाद में हार्दिक पटेल के कांग्रेस में जाने की वजह से पाटीदारों के बीच फूट पर गई और इसका सबसे बुरा प्रभाव उनके आरक्षण आंदोलन पर पड़ा। इस वजह से उनके समाज के अंदर कांग्रेस पार्टी से भी नाराजगी पैदा हो गई। बीजेपी से तो तनातनी थी ही। ऐसे में मौजूदा चुनाव में पाटीदारों के पास दो ही ऑप्शन बच रहे थे, या तो अपनी पार्टी बनाई जाए या किसी नई पार्टी का दामन थामा जाए। मिल रही जानकारी के अनुसार पहले पाटीदार समाज के लोगों ने अपनी पार्टी बनाने की कोशिश ही की, लेकिन ऐन मौके पर कुछ अड़चन की वजह से आनन-फानन में आम आदमी पार्टी का दामन थामना पड़ा। और फिर जो परिणाम आया, सबके सामने है।
अगर ऐसा नहीं है, तो पार्टी कहीं और एक भी सीट क्यों नहीं जीत पाई। गुजरात में 6 महानगर पालिका की 576 सीटों पर चुनाव हुए थे।
चर्चा तो 14 फरवरी को हुए पंजाब के स्थानीय निकाय के चुनावों की होनी चाहिए। किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पूरी की पूरी खातिरदारी को पंजाब के लोगों ने खारिज कर दिया। वहां 400 म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन और 1815 नगर परिषद और नगर पंचायत की कुल 2215 सीटों पर चुनाव हुए। वोटिंग प्रतिशत भी जबरदस्त, सत्तर प्रतिशत से अधिक रहा। बावजूद इसके आम आदमी पार्टी का परफॉर्मेंस बहुत ही निराशाजनक रहा। पार्टी ने कुल 1606 कैंडिडेट उतारे थे, जिसमें से केवल 69 ही जीत सके।
जबकि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करने पहुंचे पंजाब के किसानों के लिए पानी, बिजली, रहने के लिए टेंट और खाने के लिए लंगर की पूरी व्यवस्था में कोई कमी आप पार्टी ने नहीं छोड़ी थी। यहां तक कि ठीक उसी समय में पूरी उत्तरी दिल्ली में जारी बहुत बड़े स्तर के पीने के पानी की समस्या को भी दिल्ली सरकार ने नजरअंदाज किया था। बकायदा दिल्ली के लोगों ने आंदोलन स्थल पर पानी के टैंकर लगवाते दिल्ली जलबोर्ड के उपाध्यक्ष और आप पार्टी के वरिष्ठ नेता राघव चड्ढ़ा की वायरल तस्वीरों पर भारी आपत्ति व्यक्त की थी।
यहां तक की दिल्ली को बुरी तरह से दूषित करने वाली पराली के मामले पर आम आदमी पार्टी के नेताओं का मौन भी दिल्ली के लोगों को अच्छा नहीं लगा था। जबकि आंदोलन कर रहे किसान लगातार केंद्र सरकार से पराली जलाने की खूली छूट मांगते रहे। तमाम तरह के कानूनी प्रावधानों को खत्म करने की मांग करते रहे।
और तो और जब पंजाब के किसान दिल्ली में घुसने की मांग कर रहे थे उस समय दिल्ली में कोरोना संक्रमण पूरे चरम पर था। हर दिन दिल्ली के करीब सौ लोगों की मौत हो रही थी। इसी वजह से केंद्र सरकार ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया। ऐसे बुरे वक्त में दिल्ली के लोगों के साथ खड़े होने की बजाए आम आदमी पार्टी के नेता सियासत में लिप्त दिखे, किसानों के लिए पूरी छूट देने की मांग करते दिखे।
26 जनवरी के दिन जिस तरह का अराजक माहौल दिल्ली ने देखा। लाल किले की मर्यादा तार-तार कर दिया पंजाब से आए उपद्रवियो ने, लेकिन आम आदमी ने कुछ नहीं कहा।
कहना गलत नहीं होगा, मोदी विरोध के चक्कर में आप पार्टी दिल्ली का ही विरोध करती दिखी। दिल्ली की जनता के हितों को नजरअंदाज किया। पंजाब से आए लोगों की आवाज बुलंद करते दिखे। लेकिन चुनाव में सियासी नंबर बढ़ाने की सारी कवायद धरी की धरी रह गईं, पंजाब के लोगों ने AAP को नजरअंदाज कर दिया।
लेकिन AAP हैं कि समझ ही नहीं रहे, फिर पिछली गलती दोहराते हुए, अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की खातिर दिल्ली वालों की भावनाओं से लगातार खिलवाड़ किए जा रहे हैं।