दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ कर बड़ा संदेश देने का काम किया है कि उनकी पार्टी सबसे बड़ी किसान हितैषी पार्टी है। इसमें कोई गलत बात नहीं यदि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में कोई व्यक्ति या सियासी दल सरकार के बनाए किसी कानून का विरोध करे। लेकिन दिल्ली की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी की सरकार कुछ ज्यादा ही मुखरता और सक्रियता के साथ पंजाब के किसानों के साथ खड़ी दिखना चाहती है। हालांकि अभी पिछले दिन ही किसानों ने धरना स्थल से आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बुरी तरह से अपमानित करके भगाया। बार-बार आंदोलन स्थल से आवाज उठती रही है कि किसान किसी भी तरह के सियासी घुसपैठ का विरोध करते हैं, जिसमें विशेषतौर पर आप पार्टी का जिक्र तक हो चुका है।
देश के किसानों के दुख तकलीफ में साथ खड़े होना बिल्कुल सही है, लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता से सेवा का वादा किया है। पहले ऐसा हो चुका है जब आम आदमी पार्टी पूरे देश में पांव फैलाने के चक्कर में यहां दिल्ली में अपनी साख खराब कर चुकी थी। फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से माफी मांगी और वादा किया था कि दिल्ली का हित उनकी पार्टी के लिए पहले नंबर पर है, और हमेशा रहेगा।
लेकिन मौजूदा परिस्थिति में आम आदमी पार्टी फिर डिरेल होती दिख रही है। जब से पंजाब के किसान दिल्ली पहुंचे हैं आप पार्टी और दिल्ली सरकार के हर फोरम पर सबसे पहली चर्चा सिर्फ पंजाब से आए किसानों की ही हो रही है। सियासी पार्टियों के सेवादार बनने के होड़ में भी आम आदमी पार्टी नंबर वन नजर आई।
लेकिन अभी पिछले कुछ दिन पहले तक दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या रही पराली पर मुख्यमंत्री की तरफ से या आम आदमी पार्टी की तरफ से कोई भी नेता किसानों से इस मसले पर बात करते नहीं दिखा। वो भी तब जब पंजाब से आए किसान खुले रूप से पराली जलाने पर सजा के प्रावधान वाले कानूनों को निरस्त करने की मांग उठा रहे हैं। इससे क्या समझा जाए, क्या पराली पर मचा सियासी शोर जो पिछले दिनों दिल्ली की फिजा खराब कर रही थी, महज सियासी ड्रामा मात्र थी। मुख्यमंत्री बार-बार इसके लिए केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्यों की सरकारों पर दिल्ली की अनदेखी का आरोप लगाते रहे। लेकिन जब किसान दिल्ली आकर पराली को कोई समस्या मानने से ही इंकार कर रहे हैं तो दिल्ली सरकार की तरफ से कोई उनसे इस मसले पर बात तक नहीं कर रहा है। ये बात दिल्ली वालों को निराश करने वाली है।
इसी तरह जब पंजाब से चलकर किसान दिल्ली की सीमा पर पहुंचे थे उस समय दिल्ली में कोरोना महामारी अपने चरम पर थी। केंद्र सरकार और राज्य सरकार पूरी ताकत से इसे संभालने में लगे थे। ऐसे गंभीर माहौल में किसान जब दिल्ली में प्रवेश की मांग कर रहे थे तब दिल्ली सरकार को किसानों को समझाने का काम करना चाहिए था। लेकिन जमकर सियासत शुरू हो गई। सियासी हित महामारी पर भारी पड़ते दिखे।
जहां तक दिल्ली के किसानों की बात है वे कई बार कई मंचों से दिल्ली सरकार द्वारा अनदेखी के आरोप लगा चुके हैं। बावजूद इसके दिल्ली सरकार की तरफ से दिल्ली के किसानों की शिकायत दूर करने को लेकर कभी भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जबकि होना ये चाहिए कि दिल्ली सरकार पहले दिल्ली के किसानों के हित में अच्छा काम करके दिखाती, फिर उसे आधार बनाते हुए देश के बाकी किसानों के हित में आवाज बुलंद करती। जैसा कि वो अपने शिक्षा व स्वास्थ्य मॉडल को लेकर करती रही है। इसके आधार पर दूसरे राज्यों को चुनौती देती रहती है।
किसानों के मामले में आम आदमी पार्टी स्पष्टता के साथ अपना पक्ष दिखाने में नाकाम दिखती है। एक तरफ तो कानून को दिल्ली में मान्यता देती है, लेकिन फिर कुछ दिनों के अंतराल पर कानून को काला कानून बता कर कॉपी फाड़ती है। वो भी ऐसे मौके पर जब देश एक गंभीर परेशानी का सामना कर रहा है। केंद्र सरकार और आंदोलन कर रहे किसानों के बीच सुलह का कोई रास्ता निकलता नहीं दिखता। कई राउंड की बातचीत फेल हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की भी एंट्री हो गई है। देश चिंतित है। सबसे ज्यादा तो दिल्ली की जनता परेशान हो रही है। बॉर्डर सील हैं। लोगों का आने जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बिजनेस बुरी तरह से प्रभावित हैं। दिल्ली के व्यापारी परेशान हैं। रोजाना करोड़ों का नुकसान हो रहा है। जाहिर है ये नुकसान सीधे तौर पर दिल्ली का हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में जब समाधान दिल्ली सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, पार्टी आग में घी डालती नजर आती है।
दिल्ली के हित में नजरिया बदल कर इस मसले को क्यों नहीं देखती, दिल्ली की सेवा का वादा करके दिल्ली की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी? अपने सियासी वादे और इरादे से भटकी हुई सी क्यो दिखती है पार्टी? क्यों अनदेखा कर रही है वो दिल्ली वालों का दर्द…?