आम आदमी पार्टी और बीजेपी ने मिल कर दिल्ली में प्रतियोगिता सी चला रखी है – “कौन बनेगा सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी?” एक दूसरे के राज खोले जा रहे हैं। कौन कहां कितना बड़ा घपला कर रहा है पब्लिक को बताया जा रहा है। जाहिर है जनता ही तय करेगी कि – कौन बनेगा सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी?
डॉक्टरों की भूख हड़ताल से दोनों ही पार्टियों की देश दुनिया में काफी फजीहत हुई। लगता है इसी खीज ने इस पोल खोल प्रतियोगिता को जन्म दिया है। क्योंकि डॉक्टरों की सैलरी पर उठा विवाद बेशक थम गया हो लेकिन इसके साथ ही एमसीडी के अन्य कर्मचारियों ने अपनी बकाया सैलरी को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है। जिसमें स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक और सफाई कर्मचारी शामिल हैं।
आम आदमी पार्टी अभी भी अपने स्टैंड पर कायम है, बीजेपी शासित एमसीडी को मोस्ट करप्ट डिपार्टमेंट बता रही है। पार्टी की तरफ से कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 746 करोड़ रुपए एमसीडी को टीचरों की सैलरी के लिए दिए हैं। जिसमें से नॉर्थ एमसीडी को 344 करोड़, साउथ एमसीडी को 227 करोड़ और ईस्ट एमसीडी को 175 करोड़ रुपए दिए गए हैं। लेकिन बावजूद इसके एमसीडी के तहत आने वाले स्कूलों के शिक्षकों की सैलरी नहीं दे रही है एमसीडी।
इसके पहले आम आदमी पार्टी की तरफ से प्रोपर्टी टैक्स वसूली में जारी भ्रष्टाचार के खेल के उजागर करने का दावा किया गया। बताया गया कि दिल्ली में 12 करोड़ लोगों को प्रोपर्टी टैक्स के लिए चिन्हित किया गया। जिसमें से केवल 4 लाख लोगों से जायज तरीके से 700 करोड़ रुपए टैक्स वसूलती है एमसीडी। बाकि के 8 लाख लोगों से मिलने वाले 1400 करोड़ रुपए एमसीडी के अंदर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं।
ऐसे में दिल्ली बीजेपी कहा चुप रहने वाली थी। प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने मोर्चा खोल दिया। दिल्ली सरकार पर एमसीडी का बकाया 13 हजार करोड़ रुपए नहीं देने का आरोप तो वे लगाते ही रहे हैं। इस बार उन्होंने जल और वायु प्रदूषण के नाम पर दिल्ली सरकार को घेरा। इन सब के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार की नाकामी और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया। दिल्ली वालों को शुद्ध पीने का पानी मिल सके इसके लिए केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को बहुत बड़ी राशि उपलब्ध करवाई। जिसे डकार कर बैठी है दिल्ली सरकार। आवंटित फंड को लेकर भी कोई काम नहीं हुआ जिसकी वजह से ही परेशानी इतनी बढ़ी है।
400 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने यमुना सफाई के लिए दिल्ली सरकार को दिए। लेकिन एक भी ट्रीटमेंट प्लांट यमुना की सफाई के लिए नहीं बनवाया गया।
तकरीबन 42 सौ करोड़ रुपए 14 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए आंवटित किए गए। जिसका कुछ अतापता नहीं। आज तक एक भी नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बना। इसी के साथ किसी भी कॉलोनी में सीवर डालने का काम नहीं हुआ।
ऐसे में दिल्ली वालों को कैसे साफ पीने का पानी मिल सकता है। आए दिन गंदे पानी के सप्लाई की शिकायत रहती है। दूषित जल में अमोनिया का लेवल बढ़ते ही पीने के पानी का संकट खड़ा हो जाता है। स्थाई समाधान को लेकर दिल्ली सरकार का रवैया ढ़ीला ही नजर आता है।
वहीं दूसरी तरफ दिल्ली जल बोर्ड को दुरुस्त करने की बजाए सरकार इसके निजीकरण की तैयारी में जुटी है। गलत नीतियों की वजह से दिनोंदिन जल बोर्ड की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है। अगस्त 2020 में दिल्ली जलबोर्ड का घाटा 630 करोड़ था, जो कि अक्टूबर में बढ़कर 830 करोड़ रुपए हो गया। इसके साथ ही दिल्ली जलबोर्ड पर 28 हजार करोड़ का ऋण है, जिसकी किस्त लंबे समय से नहीं दी जा रही है।