प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में कोरोना जंग में भारत की भूमिका संबंधी तमाम तरह की उपलब्धियां गिनवाई। आज देश में रिकवरी रेट अच्छी है और फैटेलिटी रेट काफी कम है। दुनिया की अपेक्षा भारत में संक्रमण के आंकड़े प्रति दस लाख लोगों में बस साढ़े पांच हजार के करीब है..प्रति दस लाख लोगों में 83 लोगों की मृत्यु हो रही है, दुनिया में ये आंकड़े डरावने स्तर पर हैं। मतलब भारत यह जंग बेहतर तरीके से लड़ रहा है। देश के हर नागरिक की सराहना की जानी चाहिए। सरकार सुविधाएं मुहैया करवा रही है। लेकिन इस जंग में जीत की तरफ कदम तो डॉक्टर ही बढ़ा रहे हैं। जैसे सैन्य जंग में निर्णय और संसाधन सरकार देती है, लड़ती तो सैनिकों की फौज ही है। इसी तरफ डॉक्टर ही तो लड़ रहे हैं कोरोना की इस लड़ाई को सबसे आगे रह कर।
इतनी सी बात शायद केंद्र और राज्य की सरकारें नहीं समझती दिखती हैं जब मसला दिल्ली के हिन्दू राव अस्पताल के डॉक्टरों की सैलरी का सामने आता है। इस कोरोना के भीषण संग्राम के समय आपके सैनिक यानी डॉक्टर तख्ती लिए अपने वेतन की मांग करते दिल्ली के जंतर मंतर पर आंदोलन करते दिखे, इससे बुरी तस्वीर तो आज की तारीख में हो नहीं सकती। पिछले 15 दिनों से, 5 अक्टूबर से ये लोग चार महीने की बकाया बस बेसिक सैलरी ही तो मांग रहे है। इस बीच बस बहलाने के लिए एक महीना का वेतन दिया गया। सभी के परिवार हैं, किराया है, बच्चों की फीस है, तमाम तरह के खर्चे है।
तख्तियां लिए डॉक्टरों की तस्वीरें सीधे तौर पर देश की छवि को खराब करने वाली हैं। दुनिया भर में जहां आज की तारीख में डॉक्टरों और नर्सों की कमी को महसूस किया जा रहा। इनके कंफर्ट का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। वहां हमारे देश की राजधानी में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों का बड़ा तबका इस तरह उपेक्षित होकर सड़कों पर धक्के खा रहा है। और देश में इस पर बवाल नहीं मच रहा है। पक्ष तो रहने दीजिए, विपक्ष या डॉक्टरों के बड़े एसोसिएशन को भी नहीं दिख रहा यह सब। मानो देश ने संवेदना शून्य सियासी आवरण ओढ़ लिया हो।
माना नहीं जा सकता कि जंतर मंतर से उठी इन डॉक्टरों की आवाज रायसीना की पहाड़ियों में नहीं गूंजी होगी। बावजूद इसके कही से कोई आश्वासन के स्वर नहीं उठे। हैरान और परेशान करती है यह बात। इन डॉक्टरों ने देश के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जो कि खुद भी एक डॉक्टर ही हैं, तक तो पत्र लिखकर अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की है। लेकिन अब तक तो अनसुना ही है सब।
इतनी ही पैसे की किल्लत देश और दिल्ली राज्य सरकारों के पास हो गई है तो क्यों नहीं इन डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की मूलभूत आवश्यकता को पूरा करने के लिए तात्कालिक तौर पर ही सही पीएम केयर्स फंड या प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष से पैसा निकाला जा सकता ? आखिर कोविड-19 जैसी आपदा से निपटने के लिए ही तो इतना पैसा इकट्ठा किया गया। डॉक्टरों की भलाई इस फंड से क्यों नहीं की जा सकती। कम से कम जब तक इस महामारी का सामना कर रहा है देश, तब तक तो ऐसा किया ही जा सकता है।
उत्तरी दिल्ली का सबसे बड़ा अस्पताल है हिन्दूराव। कोविड अस्पताल रहा यह पिछले कई महीनों से। मतलब दिल्ली की कोरोना जंग में अहम भूमिका में रहा यह अस्पताल। न जाने कितने लोगों की जान बचाई होगी यहां के डॉक्टरों ने। हैरान करने वाली बात है कि अभी कुछ ही दिनों पहले, 10 अक्टूबर को जब डॉक्टर अपनी सैलरी मांग के लिए दबाव बढ़ाते दिखे तो दिल्ली सरकार ने सभी कोविड पेसेंट्स को यहां से हटवा दिया, सैलरी की मांग पर गंभीरता दिखाने की बजाए। जबकि सीधे तौर दिखता है कि यहां के कर्मचारियों की सैलरी का मसला दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच जारी सियासी खींचतान का हिस्सा है। मतलब क्या मान लिया जाए कि इस गंभीर कोविड काल में भी डॉक्टरों की नहीं सुनेगी सरकारें? केंद्र और राज्य सरकार का इसे इस तरह अनसुना करना देशहित में तो नहीं कही जा सकता!