एक बार की बात बताता हूं। कुछ साल पुरानी है। उत्तरी दिल्ली के एक बेहद पॉश इलाके में बड़े स्तर की डकैती की वारदात हुई। मैं घटना की कवरेज करने थोड़ी देर से गया। पता पूछ पूछ कर उस घर की तरफ जा रहा था। एक बूढ़े सज्जन ने मुझे रोक लिया। आप मीडिया से हैं मुझे आपसे कुछ बात करनी है। मैं थोड़ा जल्दी में था। लेकिन उन सज्जन की उम्र 60-65 के करीब होगी। इलाके का प्रभाव उनके व्यक्तित्व से झलक रहा था, बहुत सज्जनता से रिक्वेस्ट कर रहे थे। मुझे लगा कि इनकी बात सुननी चाहिए। मैने कहा बताइए..
वे अपना दर्द बताने लगे। उनका पूरा परिवार, बेटे बेटियां विदेशों में बसे थे। इस वजह से उन्हें अक्सर वहां जाना औऱ रहना पड़ता था। लेकिन भारतीय मीडिया में रेप की खबरों को लेकर जिस तरह का हाइप पैदा कर दिया जाता है। उससे न सिर्फ उन्हें बल्कि विदेशों में रहने वाले हर भारतीय को बेहद शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है, इसमे महिला पुरुष सभी शामिल हैं। विदेशों में विशेषकर भारतीय पुरुषों की ऐसी छवि बनती है मानों सारे के सारे, चाहे किसी भी उम्र के क्यों न हो सेक्स के भूखे हैं। उनके साथ किसी भी उम्र की कोई भी महिला या लड़की बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं। जब वे सज्जन ये सारी बात मुझे बता रहे थे तो बहुत सारा दुख उनकी आंखों में झलक रहा था। उनका कहना था कि रेप जैसी वारदात तो हर देश में होती है। इसका अमीरी गरीबी से कोई लेना देना नहीं है। इसके लिए कानून बने हैं, इसमें सख्त कार्रवाई हो। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। मीडिया को इस पर तरह के गंभीर मुद्दों पर इस तरह से शोर शराबा नहीं मचाना चाहिए।
आज की तारीख में हम एक वैश्विक समाज का हिस्सा हैं। हम यदि अपने देश में कुछ गलत करते हैं तो उसका सीधा असर हमारे देश की छवि पर पड़ता है। बड़ी संख्या में बाहर विदेशों में रहने वाले भारतीयों पर पड़ता है। वे आत्मसम्मान से वहां के लोगों से नजरें नहीं मिला पाते हैं। उन्हें अपने भारतीय होने पर शर्म आने लगती है। जाहिर सी बात है कि इन सब का हमारे देश के विकास से सीधा संबंध है। जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में पूरे देश को भुगतना पड़ता है।
उन बुजुर्ग सज्जन की बातों का मेरे उपर बहुत गहरा असर पड़ा। मुझे याद है शुरूआती दिनों में रेप के मामलों में बड़ी सजगता से रिपोर्ट तैयार करने को कहा जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में हालात बदलते दिखा तो लगा शायद इससे रेप जैसी वारदात पर रोक लग जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका और भी घृणित रूप सामने आने लगा। ऐसे में सरकारों की जिम्मेदारी है कि इसे अपने सम्मान से जोड़ने की बजाए देश के सम्मान से जोर कर काम करें। सिस्टम को अधिक संवेदनशील बनाएं। ताकि कानूनी शिकंजा सजगता से काम कर सके।
मीडिया को भी मंथन करने की बहुत जरूरत है। हाथरस से खबरें वीरवार से ही आने लगी थी कि सीमाओं को सील कर दिया गया है। बावजूद इसके पहले बड़े चैनल फिर छोटे छोटे चैनलों के रिपोर्टर एक ही अंदाज में रिपोर्टिंग करते नजर आने लगे। उसी तरह वहां तैनात पुलिसकर्मी के साथ जोर जबरदस्ती। साफ लगने लगा कि रिपोर्टर इस सोच के साथ वहां जा रहे हैं कि ठीक उसी तरह का एक्ट करना है जैसा बाकि रिपोर्टर कर के आ रहे हैं।
कोई चैनल किसी मुद्दे पर इस तरह की रिपोर्टिंग कर के सबसे आगे निकल चुका है। इसका मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि आप भी बिना मुद्दे की सही समझ के, उसी तरह की हरकत करके, उससे कुछ बड़ा हासिल कर लेंगे तो यह आपकी नासमझी..क्रिएटिव एप्रोच की कमी को ही सामने रखता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो इससे आप अपनी, अपने संस्थान की, अपने राज्य की, अपने देश की छवि बिगाड़ रहे हैं।