अचानक से नए किरदार ने एंट्री मारी..एक दिन का रजिस्ट्रार राजा..सारे दिन दफ्तर पर कब्जा..ये आदेश..वो आदेश..लगा त्यागी जी का परचम लहरा कर ही रहेगा। लेकिन ये क्या ऐन मौके पर दूसरे किरदार की दमदार एंट्री..पूरे प्रमाणिकता वाले कागजात के साथ..झट से पटखनी मिलने को ही थी पहले किरदार को..और बस होने ही वाला था ऑफिस से बाहर कि..बड़ा खेल हो गया। दूसरा वाला जिसके दस्तखत पर दम ठोक रहा था..उसकी ही कुर्सी छीन गई। बाहर ही बाहर से त्यागी जी ने जोशी जी को चित कर दिया..वो भी एकदम हल्के से लगने वाले दांव से। एकदम कमजोर सी महिला किरदार से पटखनी खाए जोशी जी कहा मानने वाले थे। मंत्रालय का कनेक्शन ऐसा घुमाया कि त्यागी जी बाहर से ही बाहर कर दिए गए। तब जाकर कहीं संभला..राजधानी के शिक्षा साम्राज्य का पावर सेंटर। बड़ी मुश्किल से लौटी रजिस्ट्रार ऑफिस और वीसी ऑफिस की असली वाली रौनक। और तो और त्यागी जी फिर कोई उत्पात न मचा सकें..इसके लिए राष्ट्रपति महोदय से उनके निलंबन वाला लेटर लाया गया। नकेल डली रहे..इसीलिए जांच भी बैठाया गया।
यह लाइव कॉमेंट्री आपको किसी चाल चौराहे से नहीं मिल रही। यह हाले बयां है देश के शीर्ष शिक्षण संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय का। जाहिर है तालियों की गड़गड़हट नहीं सुन पा रहे होंगे आप..कोरोना काल में ऐसा संभव नहीं हो सका। महामारी के महासंकट के दौर में पढ़ाने लिखाने का काम नहीं हो रहा इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि सियासत नहीं होगी। बाहर बेशक सन्नाटा रहा लेकिन..भीतर खाने जमकर जारी रही सियासत। समय मिला पढ़ने पढ़ाने वालों को तो पढ़ता कौन है..पढ़ाना जब होगा तब होगा..तो फिर कुर्सी क्रीड़ा में ही हाथ क्यों न आजमा लिया जाए।
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली विश्वविद्यालय के गौरवशाली परिसर में क्या चल रहा था इस पर कम ही बात की जाए तो बेहतर..शिक्षकों के सम्मान के संस्कार रहे हैं देश के। लेकिन इतना तय है कि सब सम्मानजनक तरीके से नहीं चल रहा था।
मोटे तौर पर कहानी यही थी कि दिल्ली विश्यविद्यालय के कुलपति योगेश त्यागी जुलाई से ही गंभीर स्वास्थ्य कारणों से अवकाश पर चल रहे थे। जिसके बाद से पीसी जोशी प्रो-वीसी की कुर्सी पर बैठ कर विश्वविद्यालय का कामकाज देख रहे थे। अंदरखाने खींचतान जरूर चलती रही। लेकिन लगता है कि रजिस्ट्रार की नियुक्ति पर दोनों का टकराव कुछ ज्यादा ही खुल कर सामने आ गया। पूरी संवैधानिक परंपरा का निर्वहण करते हुए जोशी जी विकास गुप्ता की नए रजिस्ट्रार के तौर पर नियुक्ति फाइनल करने की तैयारी में थे। यह बात त्यागी जी को शायद नागवार गुजरी..उन्होंने आनन फानन में पीसी झा को रजिस्ट्रार घोषित कर दिया। पीसी झा ने पूरे दिन रजिस्ट्रार ऑफिस पर कब्जा भी जमाया। और तौ और जोशी जी कुछ करते इसके पहले उनकी कुर्सी छीन कर नॉन कॉलेजिएट वुमेंस एजुकेशन बोर्ड की निदेशक गीता भट्ट को दे दिया। दोनों ही नियुक्तियों में विश्वविद्यालय की स्थापित परिपाटी की अवमानना की गई..ऐसा जानकारों का कहना है। इसी दौरान पीसी झा ने मंत्रालय को बतौर कार्यवाहक रजिस्ट्रार पत्र भी लिख दिया, जिसमें योगेश त्यागी के निर्णयों को सही करार दिया।
कुल मिलाकर एडमिशन के गंभीर समय में डीयू प्रशासन के अंदर अराजकता की स्थिति बन गई। जिसे संभालने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को कूदना पड़ा। सबसे पहले पीसी जोशी को पदस्थापित करवाया गया। उसके बाद ही विकास गुप्ता को रजिस्ट्रार का कार्यभार सौंपा जा सका गया। मंत्रालय को लगा कि इतना करने भर से बात नहीं बनने वाली। इसीलिए योगेश त्यागी के निलंबन और जांच का आदेश भी राष्ट्रपति से अनुरोध कर जारी करवाया गया। फिर जाकर योगेश त्यागी को विश्वविद्यालय से दूर रखते हुए..जो कुछ भी अनियमितता छुट्टी पर रहते हुए उन्होंने की..उस पर जांच बैठाई गई।