एमसीडी कर्मचारियों की सैलरी के मसले पर जिस तरह का कन्फ्यूजन या कहें कि सियासी भ्रम दिल्ली की फिजाओं में सोमवार को देखने को मिला, आभास दिला गया कि यह कन्फ्यूजन कातिलाना है, सूपड़ा साफ होकर रहेगा बस इंतजार चुनाव का है।
अद्वितीय..अद्भुत..अनोखा माहौल दिखा आज दिल्ली की सड़कों पर। जबरदस्त आक्रोश के साथ पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक ही मसले पर आंदोलन करते नजर आए। एक तरफ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और पार्षद एमसीडी कर्मचारियों की सैलरी के मुद्दे पर एमसीडी मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन करते दिखे। नारे वही कि सैलरी दो नहीं तो इस्तीफा दो। निशाने पर एमसीडी की सत्ता में पिछले पंद्रह सालों से काबिज बीजेपी रही। आप पार्टी इस सारे विवाद की जड़ एमसीडी में व्याप्त भ्रष्टाचार को मानती है। उसका कहना है कि एमसीडी के पास 18 हजार करोड़ का बजट है, पिछले साल 11 हजार करोड़ रुपए खर्च किए, आखिर इतना पैसा जाता कहा हैं। तमाम तरह के और भी पैसे के सोर्स हैं बताए जाते हैं जिनसे एमसीडी के पास पैसा आता है। जैसे कंवर्जन चार्ज से आता है मोटा पैसा, डब्ल्यूएचओ की तरफ से भी फंड मिलता है, निर्माण संबंधी काम और अन्य तरह के लाइसेंस जारी करने से भी जायज तरीके से काफी पैसा आ सकता है इत्यादि। लेकिन अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की वजह से एक तो जायज तरीके से पैसा कलेक्ट नहीं किया जाता। नाजायज तरीके से जमा पैसे की बंदरबांट हो जाती है, जिसकी वजह से हर माह सैलरी का संकट खड़ा हो जाता है। निगम में कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं, नए बहाल हो नहीं रहे। मतलब खर्चे बढ़ भी नहीं रहे। दिल्ली की सत्ता में जबरदस्त वापसी ने आप पार्टी के मनोबल काफी ऊंचा कर दिया है। जिसके दम पर पार्टी ने अभी से एमसीडी चुनाव की फिल्डिंग तेज कर दी है। इस गंभीर कोरोना काल में भी थमना नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता भी पीछे हटने वालों में नहीं दिखते हैं। सोमवार का दिन उन्होंने भी इसी सैलरी के मुद्दे पर सचिवालय पर जम कर धरना प्रदर्शन किया। बीजेपी की दलील तो वही रही कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार एमसीडी का पैसा ही रिलीज नहीं कर रही है। सरकार का फोकस अपने प्रचार प्रसार में ज्यादा है। मोटा पैसा सरकार विज्ञापनों पर खर्च करती है लेकिन एमसीडी के कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं।
आदेश गुप्ता ने बड़ा दांव खेलते हुए दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच की देनदारी से जुड़े सरकारी कागजात पब्लिक कर दिए। जिसे आधार मान कर देखा जाए तो साफ लगता है कि दिल्ली सरकार एमसीडी के लिए आवंटित पूरा पैसा रिलीज नहीं कर रही है। नॉर्थ दिल्ली का करीब 40 प्रतिशत, साउथ दिल्ली का करीब 26 प्रतिशत और ईस्ट दिल्ली निगम का केवल 10 प्रतिशत फंड के करीब ही अभी तक दिया गया है।
ये बात तो यही इशारा करती है कि दिल्ली सरकार अपनी तरफ से तय कर बैठी है कि एमसीडी उतने ही पैसे में चले जो वह माने बैठी है। एमसीडी के तैयार हिसाब किताब को सिरे खारिज कर रही है। वो एमसीडी की सत्ता में आए और फिर इस कागजी हिसाब-किताब को ठीक करे इतना धैर्य दिखाने को तैयार नहीं।
अब इस जिद को दिल्ली की जनता किस तरह देखती है इसे समझने में समय जरूर लगेगा, लेकिन इतना तय है कि कोरोना काल में जिस तरह से एमसीडी से जुड़े डॉक्टर, शिक्षक, स्वास्थ्यकर्मी और सफाई कर्मी सड़कों को धक्के खाने को मजबूर दिखे, आगामी एमसीडी चुनाव में इसका बहुत गहरा असर पड़ने वाला है।
महामारी के इस दौर में इन आवश्यक सरकारी सेवाओं की बदहाली का खामियाजा आम और खास, सभी दिल्ली वाले भी झेल ही रहे हैं।