अशोक कुमार सपरा नॉर्थ एमसीडी के साथ बतौर डीबीसी पिछले 22 सालों से काम कर रहे हैं। कोरोना काल में भी दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग में डेपुटेशन पर काम करते रहे। मतलब कोरोना वायरस से सीधी टक्कर। अपनी और अपने परिवार की जान की परवाह न करते हुए दिल्ली की सेवा करते रहे। कोरोना संक्रमण का पहला संदेह मई महीने के आखिरी में हुआ। तबीयत बिगड़ी तो जांच करवाने पहुंचे। रिपोर्ट आने तक घर में ही रहने को कहा गया। 23 मई से 27 मई तक कोरंटाइन रहे। गनीमत रही कि बच गए, रिपोर्ट निगेटिव आई। तुरंत ऑफिस ज्वाइन कर लिया। कोरोना वारियर्स के रूप में फिर मोर्चा संभाल लिया। बस अपने सीनियर को सूचित कर दिया।
जून महीने के आखिर तक आते आते अशोक कोरोना की चपेट में आ ही गए। नतीजतन 23 जून से लेकर 8 जुलाई तक उन्हें कोरंटाइन कर दिया गया। ठीक हुए तो फिर मोर्चा संभाल लिया। सारी जानकारी विभाग को देते गए। संबंधित दस्तावेज भी जमा करवाते रहे। मौजूदा एसाइनमेंट भी कोरोना वायरस से संबंधित रहा। इस दौरान अशोक और उनका पूरा परिवार जबरदस्त मानसिक दबाव में रहा। बावजूद इसके गंभीर महामारी के इस दौर में दिल्ली की सेवा में लगे रहे। एक तो काफी देर से सैलरी मिली, और वो भी जब हाथ में कटी हुई सैलरी मिली तो अशोक परेशान हो गए। सब के पास शिकायत लेकर गए। लेकिन सीनियर्स का रवैया भी निराश करने वाला रहा। हौसला बढ़ाने की बजाए, टाल मटोल वाला ही रहा।
एमसीडी में ऐसा हो रहा है तो ये अधिक परेशान करने वाला है। क्योंकि दिल्ली की साफ सफाई और बेहतर स्वास्थ्य की बड़ी जिम्मेदारी विभाग के पास है। अगर एमसीडी का कर्मचारी अपनी जान की परवाह किए बगैर दिल्ली की सेवा में जुटा है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद भी काम संभाल रहा है। ऐसे में भी सैलरी काट ली जाती है तो यह हैरान करने वाली बात है। कैसे कर्मचारी निष्ठा के साथ अपना काम कर सकेंगे? कैसे दिल्ली को बेहतर सेवा का लाभ मिल सकेगा?
अशोक कुमार सपरा का जज्बा देखिए कोरोना से ठीक होने के बाद भी काम पर डटे हुए हैं। और तो और दूसरे लोगों को कोरोना वायरस से लड़ने में ताकत मिले इसके लिए अपना प्लाज्मा भी दान किया है। कम से कम ऐसे कोरोना वारियर्स का तो सम्मान करे एमसीडी।