दिल्ली चुनाव में ‘मध्यम वर्ग’ – चैप्टर 1

middle class

दिल्ली विधानसभा के चुनाव में करीब 100 दिनों का वक्त बचा है. मैं चाहता हूं कि इन सौ दिनों में मध्यम वर्ग के कुछ बड़े मुद्दों को सामने लाया जाए. पिछले कुछ सालों में दिल्ली की राजनीति में मध्यम वर्ग के मुद्दे गौण हो गए हैं. आप गौर करेंगे तो पाएंगे आज मध्यम वर्ग की जरूरतों पर बात ही नहीं हो रही है.

आज बात हो रही है तो सरकारी स्कूलों की, आज बात हो रही है तो सरकारी अस्पतालों की. जबकि हकीकत ये है कि दिल्ली का अधिकांश मध्यम वर्ग न तो सरकारी अस्पतालों में जाता है और न ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने भेजता है. जब तक कोई इमरजेंसी वाले हालात न हो जाएं..वो सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों से दूरी बनाए रखता है.

दिल्ली की राजनीति में ज्यादातर जो बात हो रही है..वो हो रही है मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी. ठीक है इससे कुछ राहत मध्यम वर्ग को मिल रही है. लेकिन इन मुफ्त की योजनाओं ने दिल्ली को एक ऐसे सुविधा सेंटर में तब्दील कर दिया है..जहां सब कुछ बहुत आसानी से मिल रहा है. सब कुछ बहुत बढ़िया मिल रहा है. नतीजा क्या हुआ..दिल्ली के आस पास के इलाकों से इतनी बड़ी तादाद में लोग खींचते चले आ रहे हैं कि दिल्ली में हर जगह भीड़ ही भीड़. आज की तारीख में इस भीड़ का सामना करना मध्यम के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. जो अमीर हैं उनकी कोठियां हैं. गेटेड सोसायटीज हैं. जो प्रभावशाली है वो नई दिल्ली के बेहद खास इलाके लुटियन्स जोन में रहते हैं. उनका सामना ठेला-ठेली वालों से नहीं होता. उनकी गाड़ियां ड्राइवर चला रहे होते हैं. बहुत से बहुत उनका थोड़ा बहुत समय खराब होता होगा. लेकिन मध्यम वर्ग का तो पसीने के साथ खून जलता है. शहर की कोई सड़क नहीं बची, जहां रेहड़ी पटरी वाले नहीं दिखते. कोई पेडेस्ट्रेन नहीं बचा, जिस पर आप आराम से चल सकें. ऐसा कोई मोहल्ला नहीं बचा, जहां जीवन पर अवैध हाट-बाजार हावी न हो रहे हों. बाजार मानों घरों में घुसता चला जा रहा है. हर जगह भीड़ ही भीड़. हर जगह रेहड़ी-पटरी. रही सही कसर बैटरी रिक्शा वालों ने पूरी कर दी है. हर चौक-चौराहे पर बैटरी रिक्शा वालों का कब्जा है. और ये सबकुछ बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है.

आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे ये वो लोग हैं जो बस ये मान कर दिल्ली चले आए हैं कि यहां एक कमरा ही तो किराए पर लेना है. राशन फ्री, बिजली-पानी फ्री, बच्चे अच्छे सरकारी स्कूल में पढ़ जाएंगे. बीमार पड़े तो सरकारी अस्पतालों में अच्छा इलाज मुफ्त में मिल जाएगा. ये लोग किसी फैक्टरी या दफ्तर में 9-10 घंटे काम करना नहीं कर सकते. इनके लिए एक ठेला निकालना आसान होता है. उनके लिए बैटरी रिक्शा चला लेना आराम का काम है. मनमर्जी से रोजाना थोड़ा बहुत कमा लिया तो हो गया. आराम से काम चल जाता है.

दिल्ली देश की राजधानी है किसी को यहां आने से रोका नहीं सकता है. गरीब देश में गरीबों को लाभ मिल रहा है. इसे बुरा भी नहीं कहा जा सकता है. लेकिन दिल्ली में बढ़ती भीड़ ने मिडिल क्लास का जीना दूभर कर दिया है.   

जब खून जलता है तो मध्यम वर्ग का आदमी सोचता है..नहीं चाहिए मुफ्त में कुछ भी..कुछ पैसे ले-लो. चैन से जीने तो दो..!!