सीरीज-4 दिल्ली की बदलती प्रशासनिक संरचना

This is a photo of ASI monument number .N-DL-127.

आजाद भारत में दिल्ली

  1. 18. साल 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर कहा गया कि पार्ट सी राज्य न तो वित्तीय रूप से व्यावहारिक हैं, न कामकाज के ख्याल से प्रभावी हैं। इसलिए इनमें से सबका या तो पड़ोसी राज्य में विलय कर देना चाहिए या इन्हें केन्द्र शासित क्षेत्र बनाया जाए।
  2. 19. सामने रखे गए मतों को आधार बना कर आयोग का कहना था कि दिल्ली पर दोहरे नियंत्रण का प्रयोग फेल रहा। यह न सिर्फ राजधानी के विकास में बाधा बनी, बल्कि इससे दिल्ली में प्रशासनिक स्तरों पर उल्लेखनीय गिरावट देखी गई।
  3. 20. दिल्ली के लिए आयोग का निष्कर्ष था कि राष्ट्रीय राजधानी को राष्ट्रीय सरकार के प्रभावी नियंत्रण में जरूर रहना चाहिए। इसके साथ ही निगम के रूप में नगरीय स्वायत्तता की व्यवस्था की गई। और इसी के साथ दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद 1 नवंबर 1956 से समाप्त हो गए।
  4.  21. आयोग की सिफारिश के आधार पर व्यस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित सदस्यों के साथ पूरी दिल्ली के लिए नगर निगम गठित करते हुए दिल्ली नगर निगम कानून, 1957 लागू कर दिया गया।
  5. 22. साल 1966 में दिल्ली के लिए उत्तरदायी प्रशासन के लिए लगातार उठ रहे राजनीतिक दलों और सार्वजनिक विचारों की आंशिक पूर्ति के लिए दिल्ली प्रशासनिक कानून, 1966 लागू किया गया। जिसके तहत मेट्रोपॉलिटन परिषद का गठन किया गया। जिसके 56 सदस्य निर्वाचित और 5 मनोनीत किए जाने थे। मुख्यमंत्री के लगभग समान अधिकार वाले मुख्य प्रशासनिक काउंसिलर समेत एक चार सदस्यों वाली काउंसिल भी उपलब्ध कराई गई।
  6.  23. कार्यकारी परिषद कानून-व्यवस्था, सेवाओं, पुलिस और भूमि और भवन जैसे कुछ आरक्षित विषयों के मामले को छोड़कर सभी मामलों में प्रशासक के कामकाज मे सहायता करती थी।

(साभार:एनबीटी – दिल्ली की राज्य व्यवस्था और शासन प्रणाली)