टीवी चैनलों पर तो पराली से खूब खाद बन रही है। तकरीबन हर न्यूज चैनल के हर कॉमर्शियल ब्रेक में दिल्ली सरकार के द्वारा पराली से खाद बनाने के विज्ञापन दिख रहे हैं। जिसमें दिल्ली सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा कि दिल्ली के किसानों को पूसा इंस्टीच्यूट की बायो डिकंपोजर घोल मुफ्त दी जा रही है। जिसका लाभ लेकर किसान अपने खेतों में पराली को खाद में तब्दील कर रहे हैं। इसे दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है। ये रासायनिक घोल दिल्ली के किसानों को सरकार मुफ्त मुहैया करवा रही है। दिल्ली के सारे किसान इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।
जबकि इन सब दावों को दिल्ली बीजेपी झूठा बता रही है। जमीनी हकीकत कुछ और ही देखने को मिल रही है। दिल्ली के किसान पराली की समस्या से काफी परेशान हैं। गांवों में पराली के ढ़ेर के ढ़ेर पड़े हैं। किसानों को समझ नहीं आ रहा कि इस समस्या से कैसे निपटें। किसान बता रहे हैं किसी भी गांव में पराली से खाद बनाने का काम नहीं हुआ है। इसके विपरित जिन किसानों ने भी पराली जलायी है उनके खिलाफ 50-50 हजार तक के जुर्माने लगाए गए हैं। उनके खिलाफ पुलिस ने मुकदमें दर्ज किए हैं। किसानों से जिस तरह की जानकारी सामने आ रही है उसके आधार पर दिल्ली सरकार के दावे झूठे साबित रहे हैं।
दिल्ली विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने दिल्ली के गांवों में जाकर स्थिति का मुआयना किया। दरियापुर में किसानों की महापंचायत का आयोजन किया गया। जिसमें पराली पर दिल्ली सरकार के द्वारा पूरे देश में फैलाए जा रहे भ्रम पर चर्चा की गई। किसानों में दिल्ली सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश देखने को मिला। बिधूड़ी ने दिल्ली सरकार को एक हफ्ते का अल्टीमेटम दिया है कि सरकार ने जिन गांवों में भी डिकंपोजर का छिड़काव करवाया है उसकी लिस्ट जारी करे नहीं तो बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मांग की है कि किसानों के उपर जो मुकदमें पराली जलाने की वजह से दर्ज हुए हैं उन्हें वापस करवाया जाए, जुर्माना दिल्ली की सरकार भरे। जो भी मुकदमें कोर्ट में चलते हैं उन्हें दिल्ली सरकार किसानों की तरफ से लड़े। क्योंकि किसान हित की बात केजरीवाल राष्ट्रीय मंचों पर उठाते रहे हैं, ऐसे में यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे दिल्ली देहात के किसानों की परेशानी कम करें।