सीरीज-6 दिल्ली की बदलती प्रशासनिक संरचना

आजाद भारत में दिल्ली

  1. 29. दिल्ली की प्रशासनिक संरचना को लेकर सरकारिया समिति ने स्थानीय स्तर पर उत्तरदायी और प्रतिनिधित्व वाली सरकार की कमी की चिन्हित करते हुए व्यवहारिक स्तर पर हो रही परेशानियों के बारे में बताया। किस तरह की परेशानी दिल्ली के बजट निर्धारण को लेकर भी हो रही थी। बजट प्रस्तावों को भी केन्द्र के विभिन्न मंत्रालय अंतिम रूप देते थे। इस वजह से दिल्ली की जनता के प्रतिनिधियों के पास अंतिम तौर पर कुछ करने का अवसर नहीं होता था।
  2.  30. बड़ी सिरदर्दी नगरपालिका सेवाओं के गिरते स्तर को लेकर भी थी। नागरिक सुविधाओं में कमी, भारी भ्रष्टाचार, असंतोषजनक कार्यशैली को लेकर व्यापक शिकायतें थीं। इसकी मुख्य वजह मुंबई औऱ मद्रास जैसे अन्य महानगरों की तरह नगर निगम दिल्ली प्रशासन के द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा रहा था। केन्द्र सरकार द्वारा नियंत्रण न तो पर्याप्त था और न ही स्पष्ट। अगर पर्याप्त शक्तियों के साथ दिल्ली विधानसभा और मंत्रिमंडल का गठन कर दिया जाए तो नगर निगम की भ्रष्ट कार्यशैली पर अंकुश लग सकता है। विधानसभा में इस पर पर्याप्त चर्चा हो सकेगी। 
  3. 31. समिति ने दिल्ली के संदर्भ में कुछ अपवादों को भी चिह्नित किया। इसकी मुख्य वजह थी दिल्ली की विशिष्ट स्थिति। यह विशाल संघ की राजधानी का शहर है और लगभग सभी संघीय देशों की तरह इस क्षेत्र में केन्द्र सरकार को व्यवहारिक तौर पर कई सारे काम करने पड़ते हैं। ऐसे में उसके पास बंधनमुक्त शक्तियां होनी चाहिए जिन्हें विधानसभा में चुनौती नहीं दिया जा सके।
  4. 32. साथ ही इस दिशा में सोचा गया कि विधानसभा के अपेक्षाकृत कम संसाधनों पर निर्भर रहना दिल्ली जैसे बेहद खास शहर के लिए संभव नही होगा। ऐसे में उचित स्तरों के अनुरूप देखभाल करने का उत्तरदायित्व केन्द्र के हाथ में होना ही चाहिए। इसलिए कानून व्यवस्था के साथ साथ महत्वपूर्ण विषयों को भी केन्द्र सरकार के हाथों में रखना होगा।

(साभार – एबीटी)