रुद्राक्ष की शक्ति अपार धारक का हो बेड़ा पार

पं. चरनजीत

रुद्राक्ष की पावनता का अनुमान इस तथ्य से सहज ही लग जाता है कि रुद्राक्ष के वृक्ष से चली हवा के संपर्क में आने वाले पौधे भी पुण्यलोक में जाते हैं और वहां से पुनः मृत्युलोक में नहीं आते।

जाबालोप निषद में कहा गया है कि रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। रुद्राक्ष धारण करने से पशु भी रुद्रत्व को प्राप्त हो जाता है, तो मनुष्य की तो बात ही क्या।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनकी विभुतियों सहित सभी देवता भक्तिपूर्वक अवश्य ही रुद्राक्ष धारण करते हैं। गोत्र प्रवर्तक ऋषिगण, सभी के कूटस्थ मूल पुरुष, उनके वंशज तथा शुद्ध आत्मा वाले श्रौत धर्मावलम्बी भी अवश्य ही रुद्राक्ष धारण करते हैं। रुद्राक्ष धारण का पुण्यफल तीनों लोकों में विख्यात है। रुद्राक्ष फल के दर्शन से महान पुण्य मिलता है। इसके स्पर्श से करोड़ा गुना और धारण करने से सौ करोड़ गुना पुण्य प्राप्त होता है। इसमें संदेह नही करना चाहिए।

जय और ध्यानादि नही करने वाला मनुष्य भी रुद्राक्ष धारण कर ले तो वह सकल पापों से मुक्त होकर परमगति प्राप्त करता है। रुद्राक्ष धारण करने वाला अपनी इक्कीस पीढ़ीयों का उद्धार करता है और अन्त में रुद्रलोक पहुंचता है।

रुद्राक्ष को सोने अथवा चांदी के तार में पिरोकर श्री पंचाक्षर मंत्र – नमः शिवाय अथवा प्रणव – ऊं सहित जप कर धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष सदैव निष्कपट भक्ति के साथ प्रसन्नतापूर्वक धारण करना चाहिए। क्योंकि रुद्राक्ष धारण करना साक्षात शिवज्ञान की प्राप्ति का साधन है। पुराणों में देखें तो भगवान शंकर द्वारा मानव कल्याण के लिए अड़तीस प्रकार के रुद्राक्ष उत्पन्न किए गए। लेकिन सामान्यतः चौदह प्रकार के रुद्राक्षों का ही उल्लेख मिलता है। रुद्राक्षों के मनकों पर खिंची हुई सी रेखाएं स्पष्ट रुप से देखी जा सकती हैं। ये रेखाएं ही रुद्राक्ष का मुख कहलाती हैं। इनमें एक मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ की श्रेणी में माना जाता है। साथ ही पन्द्रह मुखी से उपर के रुद्राक्ष भी दुर्लभ माने जाते हैं। रुद्राक्षों के मुखों के अनुसार इनके प्रभाव इत्यादि का निर्धारण किया जाता है। यहां विभिन्न पुराणों के आधार पर विवेचन किया जा रहा है।

एक मुखी रूद्राक्ष – एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिवरूप है। यह समस्त सांसारिक सुख एवं मुक्ति प्रदान करता है। जिस घर में इसकी पूजा होती है, उस घर में कभी कलेश नही होता। साथ ही सदैव लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। ग्रहों में इसे सूर्य का रूद्राक्ष माना जाता है।

दो मुखी रुद्राक्ष – दो मुखी रूद्राक्ष अर्धनारीश्वर का स्वरूप है। यह दो प्रकार के पापों का शमन करता है तथा धारणकर्ताकी सभी मनोकामनाओँ को पूर्ण करता है। यह रुद्राक्ष शिव – गौरी का स्वरूप है। ग्रहों में इसे चन्द्रमा का रुद्राक्ष माना जाता है।

तीन मुखी रुद्राक्ष – तीन मुखी रुद्राक्ष साक्षात अग्निस्वरूप है। तथा धारणकर्ता को विधा, सभी प्रकार के साधन एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने से शिव परिवार के साथ ही अग्निदेव की कृपा भी प्राप्त होती है। ग्रहों में इसे मंगल का रुद्राक्ष माना जाता है।

चार मुखी रुद्राक्ष – चार मुखी रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्मा स्वरूप है। इसे धारण करने से वैभव, अरोग्य एवं विशद ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके दर्शन एवं स्पर्श मात्र से धर्म, अर्थ तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे धारण करने वाले पर ब्रह्मा जी प्रसन्न होते हैं। ग्रहों में इसे बुद्ध का रुद्राक्ष माना जाता है।

पांच मुखी रुद्राक्ष – पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप है। यह अभक्ष्य वस्तुओं के भक्षण, समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करता है। इसको धारण करने से महेश्वर शिव की कृपा प्राप्त से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। ग्रहों में इसे गुरु का रुद्राक्ष माना गया है।