ये कौन सी दिल्ली कांग्रेस?

दिल्ली को सुंदर बनाने का जो सपना शीला दीक्षित ने देखा, काम अभी भी उसी पर चल रहा है। चांदनी चौक का सौन्दर्यीकरण इसी कड़ी का हिस्सा है। जिस पर अभी तक काम चल ही रहा है। साल 2012 में उन्होंने इसके लिए बजट आंवटित कर काम शुरू करवाया था। यूं तो चांदनी चौक को साफ-सुंदर और व्यवस्थित टूरिस्ट स्पॉट के रूप में बदलने की चाहत के साथ यहां के तत्कालीन सांसद कपिल सिब्बल बढ़े थे। 6 साल के अथक प्रयास के बाद उन्होंने साल 2011 में प्रोजेक्ट तैयार कर इसका उद्घाटन किया था। चलिए आज की तारीख में कांग्रेस के लोग कपिल सिब्बल के नाम से परहेज करें, समझ में आता है, लेकिन शीला दीक्षित का नाम कम से कम चांदनी चौक सौन्दर्यीकरण के इस आखिरी चरण में जरूर लिया जाना चाहिए। कही कोई चर्चा तक नहीं। जबकि आम आदमी पार्टी बार बार इस काम के पोस्टर छपवाने से परहेज नहीं कर रही।

दिल्ली कांगेस की तरफ से आवाज उठी भी तो अतिक्रमण के नाम पर हटाए गए हनुमान मंदिर को लेकर। शनिवार को दिल्ली कांग्रेस की तरफ से वहीं पास में हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन किया गया। सही कहा जाए तो ये शीला दीक्षित वाली कांग्रेस नहीं हो सकती। कोई भी उस मंदिर को देख कर कह सकता था कि ये अतिक्रमण ही था। बिल्कुल फुटपाथ पर धीरे-धीरे किया गया मंदिर निर्माण। इस देश में ये सामान्य घटना है, जो निरंतर घटित होती ही रहती है। कहीं मंदिर तो, कहीं मस्जिद, तो कहीं शांति से बढ़ती गुरुद्वारे की दीवारें। चलिए लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मंदिर अतिक्रमण ही था साबित भी हो गया। दिल्ली सरकार और एमसीडी ने पूरे कानूनी तरीके से न्यायालय के निर्णय के आधार पर मंदिर को हटा भी दिया। चांदनी चौक जैसी संकरी जगह के लिए ये बहुत बड़ा काम हुआ। निश्चिततौर पर इससे जगह की खूबसूरती तो बढ़ी ही और आम लोगों को राहत भी मिलेगी। लेकिन इस बात को कहने की हिम्मत देश की राजधानी का कोई भी राजनेता नहीं कर पा रहा। समझ में बात आती भी है। बीजेपी के बल के नीचे दबे सारे विपक्षी दल इस मौके को कैसे जाने दें? भले ही आदेश आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार लेकर आई हो, काम तो जमीन पर बीजेपी शासित एमसीडी को ही करना पड़ा। जमकर सियासत चली। दिल्ली बीजेपी भी समझ नहीं पा रही कैसे राम भक्त हनुमान को छोड़ विकास की बात करे? और तो और मजबूरी ऐसी कि चचेरे ममेरे टाइप वीएचपी, हिन्दू रक्षा दल जैसे भाई संगठनों को कैसे समझाए?

ये सब चल ही रहा था, हनुमान नाम की कोई कमी नहीं थी, यहां तक कि ताजे-ताजे देश में अवतरित हुए हनुमान भक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सेना भी उनका मान कम नहीं होने देना चाह रही थी, सियासी वार पलटवार निरंतर जारी ही है। कि तभी दिल्ली कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं भी उसी रंग में रंगे यहां हनुमान भक्ति में रमे नजर आए। उस विकास को बहुत पीछे छोड़ दिया जिसके नाम पर शीला दीक्षित ने दिल्ली को सजाने का संकल्प लिया और बहुत हद तक पूरा भी किया। थोड़े बहुत जो रह गए वही काम हो रहे हैं। जितनी शांति, बिना किसी सियासी शोर के जितना सारा काम शीला दीक्षित ने अपने मुख्यमंत्री रहते कर दिया, उसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे में उनका नाम इस चांदनी चौक के सौंदर्यीकरण के आखिरी चरण में यहां गूंजता तो शायद आज दिल्ली वालों को उस विकास वाले सियासी मॉडल की कम से कम याद तो आती, और समझ विकसित हो पाती, और सच कहा जाए तो ये उस राजनेता को सच्ची श्रद्धांजली होती।