बाहर बैठे किसान, अंदर मजदूर परेशान

एक डर रहा है तो दूसरा मर रहा है!

दिल्ली की सीमाओं पर किसान बैठे है, तो वही अंदर एमसीडी से जुड़ा बड़ा मजदूर तबका हैरान परेशान काम-धाम छोड़े बैठा है। दर्द इतना हावी हो चला है कि कह पड़ते हैं, अब बस भी करे सरकार। नहीं सुननी किसी की बात, नहीं समझनी किसी की सियासी चाल, हम तो मेहनतकश इंसान है, काम से कोई शिकायत है तो बताओ, प्रशासन का डंडा चलाओ, लेकिन हमारे साथ हमारे परिवार वालों को तो न सताओ। ये क्या बात होती है, कहने को हम देश की राजधानी संवारते हैं। दिल्ली को साफ-सुधरा, सुंदर बनाते हैं। गुजार दी सारी उम्र दिल्ली की सड़कों को बहारते, नालियों की धार निर्बाध बहाते हुए, लेकिन आज तक घर नौकरी पक्की होने की खबर न दे सके। बाल सफेद हो गए, चेहरे पर झुर्रियां छांकने को है, बीस-बीस सालों से काम कर रहे, बस कोरे आश्वासन कानों में पड़ते रहे हैं।

हालात पक्के कर्मचारियों के भी कच्चे हो जाते हैं। रिटायरमेंट क्या होती है, बस खाली हाथ घर जाने की बात होती है। भुखमरी के हालात देखने को मिल रहे हैं उनके घरों में जो निगम की नौकरी से बाहर हुए। न पेंशन, न किसी तरह की जमा राशि मिलती है। सैलरी फंसी हो तो हालत और भी बुरी। समझ नहीं आता किससे पूछे, किसे बताएं। सभी तो परेशान ही दिख रहे हैं।

लानत है ऐसी सियासत पर जो गरीब मजदूरों की सैलरी पर आ टिके। हर बार, बार बार सैलरी के लिए हड़ताल। जिस दिल्ली को साफ किया, उसे गंदा देख दर्द तो होता है। लेकिन करें तो करें क्या, दर्द की राह दिल्ली की सियासत जो चल पड़ी है। पांच-पांच महीने से घर में सैलरी न आए तो घर कैसे चलाएं? यहां तो देश चलाने वाली सरकार भी है, दिल्ली चलाने वाले भी खूब पढ़े लिखे आए हैं, यही इन मजदूरों को बिना सैलरी के काम का हौसला बढ़ाने और घर चलाने का हुनर समझाएं।

कैसी राजधानी, कैसा गौरव, सभी तो बैठे हैं यहीं, देश का शीर्ष नेतृत्व यहीं तो बैठा है। कोई देश दौड़ाने का दम दिखा रहा, तो कोई सियासी इतिहास में नया अध्याय लिखने का दम भर रहा। फिर नौबत ऐसी कैसे और क्यों आ गई जब मजदूर के परिवार के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया। एमसीडी इतनी फेल हो गई तो समाधान क्या बस यही बचता है कि कर्मचारियों के साथ साथ दिल्ली वालों को सताया जाए। समृद्ध संवैधानिक व्यवस्थाएं क्या बस यही समाधान दे पा रही हैं?

एमसीडी के चालीस से ज्यादा कर्मचारी संगठनों ने ठाना है कि अब की बार तो सब के सब मनवाना है। बहुत हो गया सियासत का छद्म घात-प्रतिघात। अब सब मिल कर करेंगे सीधा प्रहार। सारी की सारी मांगें माने एमसीडी और दिल्ली सरकार। कैसे करना है, क्या करना है आपस में समझें। सबकी बकाया सैलरी एक साथ रिलीज करें। सालों से उपेक्षित कच्चे कर्मचारियों को पक्का करें। पेंशन सुनिश्चित करें। काम जितना करवाना है, करवाएं। सिस्टम में जो सुधार करना है करें। जिससे जितना काम लेना है, लें। लेकिन मेहनत मजदूरी का पैसा न रुके ये नेतृत्व तय करे।