सब्जी बाजार से कृषि कानून की समझ

चिराग की सस्ती सब्जियों ने सुलझाई गुत्थी

चिराग एक गरीब परिवार का लड़का है, जो कोरोना काल में कुछ और बेचने का काम नहीं कर पा रहा था, इसलिए उसनेमजबूरी मेंठेले पर घूम-घूमकर सब्जियां बेचने का काम शुरू किया। वैसे तो येसामान्य सीबातहै लेकिन कुछ ही दिनों में मुहल्ले को लोगों को असामान्य सी लगने लगी, जब एहसास हुआ कि मुहल्ले के सब्जी बाजार से काफी सस्ते दर में सब्जी वो घर के पास आकर दे रहा है। जल्द ही सुबह उसके पहुंचने का लोग इंतजार करने लगे। कई सब्जियां वो बाजार से करीब करीब आधी कीमत में बेच रहा होता है। ये हैरान करने वाली बात लगी। सालों बाद से ऐसा हो रहा था। पहले अक्सर ऐसा देखने को मिलता था, जब कोई अचानक से मंडी से सस्ती सब्जियां लाकर बेच जाया करता था। लेकिन लंबे समय से यह परंपरा नॉर्थ दिल्ली के इस मुखर्जी नगर इलाके में खत्म सी हो गई। सालों से दुकान सजाए सब्जी वाले जम से गए हैं। खुदनहीं लाते, सभीएक ही गाड़ी वाले से आजादपुर मंडी से सब्जी मंगवाते हैं। जानकारी तो यही मिलती है कि एमसीडी और दिल्ली पुलिस की कट निकालकर सब के सब एक ही दर में सब्जी बेचने लगे हैं। यहां तक कि इलाके में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में भी इसी सिस्टम की पैठहै, वहां भी उसी दर में सब्जियां मिलती है। समझ नहीं आता कि इलाके में जो भी सब्जी बेचने आ रहा है तकरीबन 95 प्रतिशत सब्जी बेचने वाले एक दर में सब्जी कैसे बेच रहे हैं? अच्छे और खराब का फर्क भी ज्यादा मायने नहीं रख रहा।

दिल्ली के मुखर्जी नगर के पास नेहरू विहार में सब्जी बाजार सालों पुराना है। तकरीबन बीस दस-पंद्रह साल पहले तक सब ठीक था। सामान्य तौर पर हर तरह की सब्जियां कम ज्यादा कीमत में किसी न किसी दूकान वाले के पास मिल जाया करती थी। लेकिन अब लंबे समय से सब एक से हो गए हैं। सब्जियों की कीमत कम, बहुत कम ही हुआ करती है। हां बहुत महंगी होती जरूर दिखती है।इसका सीधा नुकसान खरीददार को हो रहा है। साफ दिखता है कि बिचौलियों की मनमानी या जड़ता कह लीजिए या फिर कुछ व्यवस्थासी बन गई है कि मौसम की सस्ती सब्जियों का सुख भी दिल्ली वालों से छीन सागया है।

लगता नहीं था कि ये बदल पाएगा कि तभी चिराग की ऐंट्री होती है और फिर गुत्थी सुलझती दिखती है। वो अपनी मेहनत से उसी आजादपुर मंडी से रोजाना बस दो-तीन सब्जियां लाकर सस्ते में बेच रहा है।जाहिर है कि इससे सब्जी खरीदने वाला भी खुश और किसान को तो जो मिल रहा था वो मिल ही रहा है।

देश की सरकार भी शायद अभी इसी चुनौती से जूझ रही है। खेती किसानी के काम में बिचौलियों का कंट्रोल कम करना चाहती है सरकार। ताकि खरीददार को राहत मिल सके, उसके पास ज्यादा ऑप्शन हों और साथ ही किसानों को भी बाजार के बढ़ते दाम का वाजिब हिस्सा मिल सके। आत्महत्या की नौबत तो बिल्कुल न आए।

देश देखता रहा है कि खेती किसानी का पारंपरिक काम जिसे भी मौका मिला वो छोड़ता ही चला गया। बिजली, पानी, उपकरणों से जुड़ेकिसानों के हित में तमाम तरह के फैसले सरकारें लेती रही हैं। किसानों की कर्ज माफी की योजनाओं के ऐलान ने राज्यों की सरकारें बदल दी हैं। खराब फसल, कर्ज के बोझ, जमीन विवाद आदि कारणों से किसानों के आत्महत्या के आंकड़ें दिल बोझिल करतेरहे हैं।

तो क्या ऐसे ही चलता रहे, इसे सुधारने की कोशिश भी न की जाए?

एक बात ये भी देश जान चुका है कि कमोवेश ऐसे ही कृषि सुधारों की बात समय समय पर सभी सियासी पार्टियां करती रही हैं। लेकिनहिम्मत कह लीजिए या फिर ऐसी मजबूती उन्हें नहीं मिल सकी कि वे इसे लागू कर पाएं।

रही बात पंजाब के किसानों कि, तो ये तो दुनिया जानती है कि वहां के किसान समृद्ध हैं। वहां की जमीन उपजाऊ है, लोग मेहनती हैं,अच्छी जानकारी रखते हैं, कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग का सफल इस्तेमाल कर रहे हैं। राज्य सरकारें भी ज्यादा मंडी टैक्स वसूलती रही, ज्यादा से ज्यादा फसल एमएसपी पर लेती रही, मिलाजुला कर देखा जाए तो सारी व्यवस्था का सारा लाभ सब को मिलता रहा है। सारे आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत हैं। पंजाब के किसान की विशिष्ट पहचान है।

लेकिन इस आदर्श स्थिति की कल्पना पूरे देश में नहीं की जा सकती। एक बात एक व्यवसायी मित्र ने बताई कि ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि पंजाब के नियम ही सारे देश में लागू किए जाने चाहिए। बात बिल्कुल सही है लेकिन तमाम आवश्यकताओं पर गौर किया जाए तो ऐसा आसान नहीं दिखता। व्यवस्था से जुड़े लोगों केतमाम तरह के हित टकराते हैं। देश के अन्य हिस्सों के किसानों और पंजाब के किसानों की मनोदशा में जमीन आसमान का फर्क है। पंजाब में ऐसा होने में सालों लगे हैं। विदेशों से संपर्क उनके विकसित सोच का एक बड़ा कारण रहा है।

ऐसे में आवश्यक लगता है कि देश के अन्य हिस्सों के किसानों को बाजार तंत्र से सीधे जोड़ने में सरकार सक्रीय भूमिका निभाए। किसानों को सबल बनाने के उपाय किए जाएं। नए कृषि कानूनों में ये प्रयास झलकते तो हैं, सुधार की गुंजाइश तो हमेशा रहती है। इसे बड़े स्तर पर किसानों के बीच खुली चर्चा के लिए रखा जाए। संभव हो तो पंजाब के किसानों की मदद भी ली जाए। लेकिन मौजूदा गतिरोध और जड़ता को खत्म किया जाए। क्योंकि ये केंद्र सरकार के लिए तो बिल्कुल ठीक नहीं, साथ हीकिसानों की पारंपरिक प्रतिष्ठित छवि को भी विकृत करने वाला है।

और आखिर में एक बात जो उसी व्यवसायी मित्र की बातों से समझ आयी कि बिचौलियों की भूमिका को बिल्कुल नकारात्मक रूप में दिखाना गलत है।लंबे  समय में एक व्यवस्था सी बनीहै, लाखों लोग इस स्थापित तंत्र का हिस्सा हैं, बड़ी आबादी वाले इस देश में इतने बड़े तंत्र को अस्थिर करने का कामव्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए। इस बात की गारंटी रहनी ही चाहिए कि नई व्यवस्था बस बड़े व्यवसायियों के चंगुल में फंसकर न रह जाए।