‘नहीं सुनते दिल्ली के मुख्यमंत्री हमारी’

स्कूल ट्रांसपोर्ट यूनियन के प्रदर्शन की घोषणा

“हमें बीजेपी या कांग्रेस के आदमी मत बताओ, खालिस्तानी या पाकिस्तानी नहीं ठहराओ, हम यहीं दिल्ली के रहने वाले हैं। दिल्ली की सरकार को टैक्स देते हैं। दिल्ली की सियासत में दमदार दखल रखते हैं। हमारे दर्द को समझे दिल्ली की सरकार और हमारी मदद के लिए आगे आए। हम बस टूटने के कगार पर खड़े हैं।“

– ये दर्द है दिल्ली में स्कूल ट्रांसपोर्ट से जुड़े उन हजारों लोगों का जो आज भुखमरी के कगार पर हैं। बताने की जरूरत नहीं कि कोरोना वायरस की वजह से दिल्ली के सारे स्कूल बंद हैं। बड़ी संख्या में लोग स्कूल कैब और बस की सेवा से जुड़े हैं। पिछले कई महीनों से सारे स्कूल कैब और बस के चालक व सहायक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिल कर अपनी परेशानी बताने की कोशिश करते रह गए। ताकि थोड़ी ही सही, कुछ आर्थिक मदद मिल सके। बार-बार सीएम को पत्र लिख कर, ई-मेल करके, ट्विट करके अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन सीएम का समय तक नहीं मिल सका, सुनवाई तो दूर की बात रही। आज दस महीने हो चुके है, हालात काफी गंभीर हैं। कुछ लोगों के आत्महत्या तक की सूचना है। लेकिन दिल्ली के सीएम ने इतनी बड़ी आबादी को नजरअंदाज कर रखा है।  

वहीं स्कूल वाले इनकी सीधी जिम्मेदारी नहीं स्वीकारते। अपनी मजबूरियां गिनाते रहते हैं। ऐसे में इन्हें कहीं और से किसी भी तरह की आर्थिक मदद की संभावना नहीं बनती। स्कूल वैन का कोई और व्यवसायिक इस्तेमाल संभव नहीं। सारी की सारी स्कूल की वैन और बसें पिछले दस महीने से खड़ी हैं।

उस पर गाड़ियों के लोन ने हालात और बिगाड़ दिया। एक तो कमाई नहीं, उपर से, बार-बार बैंकों की तरफ से किस्त की भरपाई को लेकर तगादे रुकने का नाम नहीं लेते। इसकी चपेट में आकर कई लोग डिप्रेशन के शिकार हो गए।

यही परेशानी गाड़ियों के फिटनेस टेस्ट को लेकर भी रही। गाड़ियां चल नहीं रहीं, आगे कब चलेंगी कोई तय नहीं, लेकिन सरकारी काम करवाने की डेडलाइन बड़ी मुसीबत बन कर सामने खड़ी हो जाती है। बड़ी मुश्किल से, इस मुसीबत के दौर में कहीं से पैसे इकट्ठे करके लोगों ने बकायदा जुर्माना देकर फिटनेस टेस्ट की फीस जमा करवाई। अब जाकर ट्रांसपोर्ट विभाग ने सुध ली और रियायत की घोषणा की। लेकिन अब तक कई चालकों ने तनाव में आकर टेस्ट करवा लिए। उनका तो अब कुछ नहीं हो सकता।

जबकि दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि देश के राजधानी क्षेत्र में रहने वाले, इतनी बड़ी संख्या में इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की सुध लेती और इस महामारी के महासंकट के दौर में इनकी मदद करती। जब स्कूल ही बंद हैं, स्कूल वैन और बस चल नहीं रहे तो उनकी और उनके परिवार की चिंता करती। जैसे ऑटों वालों को आर्थिक मदद दी गई। वैसी ही व्यवस्था इनके लिए भी करती। सरकारी टेस्ट वगैरह को शुरू से ही फिलहाल रोक दिया जाना चाहिए था। कम से कम दबाव बना कर जुर्माना तो कतई नहीं वसूलना चाहिए था। उसी तरह जिन लोगों की गाड़ियों की किस्तें जा रही हैं, उस पर भी तात्कालिक तौर पर रोक लगनी चाहिए थी।

किसी तरह की संवेदनशीलता दिल्ली सरकार ने नहीं दिखायी। अब हालात संभाले नहीं संभल रहे। लोगों के लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। सरकार है कि सुनने को तैयार नहीं। स्कूल ट्रांसपोर्ट एकता यूनियन ने 28 दिसंबर को प्रदर्शन का आह्वान किया है। अगर इस बार सीएम की तरफ से उनके ज्ञापन का जवाब नहीं मिलता, मिलने का समय नहीं मिलता है, तो मजबूरी में उन्हें सड़कों पर उतरना ही पड़ेगा।

देश भर के तमाम तरह के सियासी मुद्दों पर सक्रियता दिखाने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को दिल्ली के लोगों के दर्द को सुनाने और समझाने के लिए आवाज बुलंद करनी ही पड़ेगी।