पराली बताती है ‘अंदर’ की कहानी

दिल्ली वालों के लिए पराली शब्द ही परेशानी है। यह आज से नहीं सालों से है। हर साल सर्दी शुरू होने के साथ ही शुरू हो जाती है पराली की परेशानी। सर्दी शुरू हो रही होती है तभी आसमान धुंध से भरा भरा दिखने लगता है। पहले यह कुहासा का भ्रम पैदा करता है। लेकिन जैसे ही सांस लेने में दिक्कत शुरू होने लगती है, आंखों में जलन सी होने लगती है तो समझ में आता है कि यह तो पराली का धुंआ है।

पराली की पुष्टि होते ही सियासी घमासान शुरू हो जाता है। सबसे पहले दिल्ली सरकार हरकत में आती है। उनका शोर सुन कर केंद्र सरकार जागती है। फौरन सभी कुछ न कुछ करने में जुटते हैं या कहें कि कुछ न कुछ करते दिखना चाहते हैं। यह रीत आज की नहीं बहुत पहले से दिल्ली देखती आई है।

इस बार जो हुआ उसने दिल्ली और केंद्र सरकार ही नहीं पंजाब, हरियाणा और यूपी समेत सभी राज्य सरकारों की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। चूंकि पहल दिल्ली सरकार ने की इसलिए इसे थोड़ी रियायत दी जा सकती है। लेकिन जिस तरह से दिल्ली में ही स्थित प्रतिष्ठित पूसा इंस्टीच्यूट ने बायो डिकंपोजर बना कर एक सस्ता समाधान पराली समस्या का तैयार कर दिया है, देश चलाने वालों मौजूदा शीर्ष नेताओं और अधिकारियों की प्रशासनिक क्षमता पर संदेह खड़े करता है। हैरानी होती है ऐसा पहले क्यों नहीं किया जा सका। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सबसे पहले पूसा इंस्टीच्यूट से संपर्क किया, उनसे इसका समाधान तलाशने के लिए अनुरोध किया। तब जाकर यह सब के सामने आया। जायज भी है जिस तरह की वाहवाही सीएम केजरीवाल ने अपने इस प्रयास के लिए समेटा।

हद तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कर दी। पहले तो दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली को बड़ा फैक्टर मानने से ही इंकार करते रहे। फिर जब फजीहत हुई तो सफाई देते दिखे। आनन फानन में जांच के लिए कई सारे ग्रुप बना दिए। साफ लगता रहा कि कुछ करते दिखने के लिए ही कुछ किया जा रहा है। खैर जब पूसा इंस्टीच्यूट की डिकंपोजर को लेकर सीएम केजरीवाल को वाहवाही लूटते देखा तो लगा सीने पर सांप लोट गया। केंद्रीय मंत्री ने तुरंत बयान जारी किया कि पूसा इंस्टीच्यूट केंद्रीय संस्था है। जिसने डिकंपोजर तकनीक का प्रदर्शन किया है। सरकार वायु प्रदूषण की समस्या को समाप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करती रहेगी।

देश की राजधानी को लेकर शीर्ष नेतृत्व का इस तरह का गैरजिम्मेदाराना रवैया सिर्फ दिल्ली वालों में ही नहीं, समूचे देश के लोगों में निराशा भरने वाला है। पराली पूरे उत्तर भारत की समस्या रही है। पता चलता है कि पराली से सीएनजी बनाया जाता है, करनाल में एक प्लांट भी लगा है, पराली से कोयला भी बनता है, पंजाब में कई सारी कंपनियां यह काम कर रही है। बावजूद इसके यह इतनी गंभीर समस्या बन कर देश दुनिया में दिल्ली को बदनाम करती रही। उम्मीद तो यही है कि इसका सस्ता समाधान बायो डिकंपोजर अगले साल पराली को समस्या नहीं बनने देगा। पड़ोसी राज्य किसानों पर पुलिसिया कार्रवाई करने की बजाए दिल्ली सरकार की तरह ही अपने किसानों को डिकंपोजर मुफ्त में उपलब्ध करवाएंगे। और दिल्ली को स्वच्छ हवा मिल सकेगी।