त्योहारों पर सरकार का नकारापन हावी

प्रदूषण है, पटाखे पर बैन, अधूरी दिवाली मनाइए। कोरोना गंभीर है घाट पर नहीं जाइए, छठ नहीं मनाइए। चलिए मान लेते हैं..लेकिन कुछ सवालों के जवाब तो आप भी देते जाइए। जरा बताइए कि प्रदूषण का इतना बुरा हाल हुआ क्यों? पराली की वजह से ही न। पराली जलाने पर नियंत्रण लगाने में चूक किससे हुई। हर साल जलती है पराली फिर सरकार की नींद पराली का धुंआ दिल्ली पहुंचने पर ही क्यों खुलती है। जो भी दावे आज आखिरी वक्त पर किए जा रहे हैं इसे पहले क्यों नहीं किया गया? बताते चले कि बायो डिकंपोजर की तकनीक दो साल पुरानी है। फिर तो यही समझा जाए न कि सरकार को समझ आने में दो साल लग गए।

एक भी बैठक, बातचीत, वीडियो कॉन्फ्रेसिंग ही सही पराली के संबंध में दिल्ली के सीएम ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के सीएम के साथ की हो तो बताया जाए।  

मतलब साफ है कि सरकार समस्या का समाधान सही समय पर नहीं दे पा रही तो इसका खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ेगा। अब चूंकि समस्या कंट्रोल से बाहर है तो ग्रीन पटाखे भी नहीं जलाइए। दिवाली आधी अधूरी मनाइए।

अब बात कोरोना की भी कर लेते हैं। शहर में सब कुछ पूरी तरह से सरकार की सहमति से खुला हुआ है। दलीले सही हैं कि काम धंधे पटरी पर लौटने चाहिए। लेकिन बाजारों में बेतहाशा भीड़ को तो नियंत्रित कर ही सकती है सरकार। वहां सख्ती तो फिर भी समझ आती है, तय है विरोध ज्यादा नहीं होगा। सख्ती के प्रावधान होंगे तो भीड़ भी कम पहुंचेगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। और तो और बसों में भी सरकार ने पूरी सवारी चढ़ाने की छूट दे दी।

साफ लगता है कि सरकारी शिथिलता की वजह से कोरोना का ग्राफ दिल्ली में तेजी से इतना बढ़ा है। माना यहां पब्लिक को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन पब्लिक की लापरवाही पर अंकुश लगाने के तो सरकार के पास तमात तंत्र हैं। लेकिन फिर भी स्थिति अनियंत्रित है तो जिम्मेदार सरकार ही मानी जाएगी।

सरकार भीड़ नियंत्रित नहीं कर पा रही है, कोरोना का ग्राफ बढ़ गया इसीलिए आप छठ नहीं मनाइए। दिल्ली में 1500 के करीब घाट हैं जहां छठ का आयोजन होता है। सरकार ने इस बार समय रहते इस दिशा में कुछ सोचा ही नहीं। लगता है कि पहले से ही सरकार सोच बैठी थी कि छठ पर बैन लगाना है। क्योंकि बहुत पहले से घाटों की साफ सफाई का काम शुरू हो जाता है। कोरोना के हालात 10-15 दिनों से ज्यादा बिगड़े हैं। अगर मंशा होती तो यमुना की साफ सफाई का काम शुरू हो चुका होता।

मतलब साफ है कि सरकार समय रहते सतर्कता से तैयारी नहीं कर सकी इसलिए पब्लिक को आदेश है कि छठ न मनाए। क्योंकि दिल्ली जैसी जगह में बड़े छत वाले अलग अलग घर कितनों के पास होंगे, और न ही घरों में बगीचा या आंगन है कि आप अपने घर में छठ कर सकें। किसी खुली जगह या पार्क में ही तालाब बना कर पूजा किया जा सकता है, जाहिर है जिसकी गिनती सार्वजनिक स्थल में हो जाएगी। और तो और बकायदा डीएम और पुलिस अधिकारियों को दिल्ली सरकार का आदेश जा चुका है कि लोगों को छठ पूजा करने से रोकें, सार्वजनिक स्थलों पर छठ पूजा करते किसी को पकड़ें तो भारी जुर्माना वसूलें।

हालांकि भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने मोर्चा थाम लिया है। उन्होंने सरकार से कहा है कि छठ पूजा संबंधित सोशल डिस्टेंसिंग की गाइड लाइन तैयार करे दिल्ली सरकार। सीमित घाटों पर ही सही, समुचित व्यवस्था के साथ छठ पूजा के आयोजन की अनुमति प्रदान की जाए। जब राजधानी में हर तरह की छूट सरकार दे चुकी है तो धार्मिक आयोजनों को बिल्कुल प्रतिबंधित कर देना सही नहीं है। छठ तो प्रकृति की उपासना का पर्व है, कम से कम इसे नहीं रोका जाना चाहिए।