प्रकृति आराधना के लिए प्रदर्शन

छठ पूजा पर दिल्ली सरकार के लगाए प्रतिबंध को हटाने की मांग के साथ पूर्वांचली समाज के लोगों ने सीएम आवास पर जोरदार प्रदर्शन किया। साथ ही कड़ा संदेश दिया कि अगर पूजा की अनुमति नहीं मिली तो समाज समय आने पर इसका जवाब केजरीवाल सरकार को जरूर देगा। जब सरकार दिल्ली में बसों को पूरी क्षमता में सवारी बैठाने की छूट दे सकती है, मॉल, बाजारों, साप्ताहिक हाटों को छूट दे सकती है, खुद इतने बड़े पैमाने पर लक्ष्मी पूजन का कार्यक्रम आयोजित कर सकती है, और तो और शराब के ठेके तक खोल दिए तो फिर पूर्वांचल समाज को प्रकृति की आराधना की अनुमति नहीं देना कहां तक जायज है? सरकार की नाकामियों की वजह से दिल्ली में कोरोना के मामले बिगड़े हैं। इसके नाम पर किसी की संस्कृति पर प्रहार करना गलत है।

सरकार सीमित घाटों पर छठ के आयोजन की अनुमति दे सकती है। 1500 घाटों की जगह सिर्फ 400-500 घाटों को तैयार करवा दे। सरकार लोगों की संख्या पर प्रतिबंध लगा सकती है। सोशल डिस्टेंसिंग की विशेष गाइड लाइन बना कर दे सकती है। कार्यक्रम को सुचारू तरीके से संपन्न करवाने के लिए दिल्ली में सक्रीय छठ पूजा समिति के लोगों की मदद ले सकती है। लेकिन तुगलकी फरमान जारी करके छठ पूजा पर प्रतिबंध लगाना, लाखों की संख्या में दिल्ली में रह रहे पूर्वांचल समाज के लोगों का अपमान है। इतने सारे दिल्ली वालों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का काम कर रही है केजरीवाल सरकार।

दिल्ली भाजपा पूर्वांचल मोर्चा और कई सारी छठ पूजा समितियों ने मिलकर इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस मुद्दे पर शुरू से ही मुखर रहे दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि पूर्वांचलवासियों की धार्मिक भावनाओं को आहत ना करे केजरीवाल सरकार, गाइडलाइन या वैकल्पिक व्यवस्था के साथ मिले छठ महापर्व के आयोजन की अनुमति। पूर्वांचलवासियों के लिए छठ पर्व सबसे बड़ा पर्व है, इसे महापर्व कहा जाता है, समाज को इसे छोड़ने के लिए बाध्य करना किसी भी लिहाज से जायज नहीं ठहराया जा सकता।

प्रकृति की उपासना के लिए लोगों को प्रदर्शन करना पड़ रहा हो, ऐसा शायद ही कभी देखा या सुना गया होगा। छठ में सूर्य की पूजा की जाती है। उगते और डूबते सूर्य को जल देकर नमन किया जाता है। इसे सहजता के साथ नदी के घाटों या फिर तालाबों के किनारे ही किया जा सकता है। बहुत सारे लोग अपने घरों में पर्याप्त मात्रा में पानी जमाकर उसमें खड़े होकर भी इस पूजा को संपन्न करते हैं, लेकिन इसके लिए काफी जगह चाहिए और साथ ही ऐसी जगह होनी चाहिए जहां से उगते और डूबते हुए भगवान सूर्य के सहजता से दर्शन हो सकें।