दिल्ली का दर्द भी तो जाने कोई !

दिन भर किसानों और पुलिस के बीच झड़प होती रही। पानी की बौझार फेंक कर किसानों को आगे बढ़ने से रोकती रही दिल्ली पुलिस। पत्थरबाजी हुई, लाठी चार्ज किया गया, आंसू गैस के गोले तक फेंके गए। सब कुछ देखती रही दिल्ली। यकीनन यह दिल को पसंद आने वाली तस्वीर तो नहीं ही है।

लेकिन महामारी पर भारी पड़ती सियासत निराश करने वाली रही। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की सांसें अटकी हुई हैं। इसे संभालने वाले केंद्र और राज्य की सरकारों के हाथ पांव फूले हुए हैं। तमाम तरह की सख्ती दिल्ली वालों पर थोपी जा रही है। रात के कर्फ्यू तक की बात होने लगी है।

सच कहा जाए तो किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। अर्थव्यवस्था संभाले की जान बचाए इसी उधेड़बुन में हैं सारे के सारे, चाहे जनता हो या सरकारें। दिवाली के समय यहां भारी संख्या में पूरे देश के व्यापारियों का आना जाना हुआ। यहां के लोगों ने भी कोरोना को कुछ दिनों के लिए मानों भुला दिया। इसका खामियाजा आज की तारीख में दिल्ली को भुगतना पड़ रहा है। रोजाना सौ से उपर लोगों की जान जा रही है। 4 से 5 हजार तक रोजाना कोरोना संक्रमितों की संख्या पहुंचने लगी है। हालात बहुत ज्यादा बिगड़े हुए हैं। यह महामारी सिर्फ दिल्ली में है ऐसा नहीं, देश बस एक करोड़ संक्रमितों का आंकड़ा छुने ही वाला है।

लेकिन महामारी की इन महा गंभीर परिस्थितियों के बीच किसानों की इस तरह दिल्ली पर धावा बोलने की तैयारी डराने वाली है। माना कि सरकार के कृषि कानूनों में कई खामियां हैं। इससे किसानों को आने वाले दिनों में काफी दिक्कत हो जाएगी। एमएसपी या मंडी को लेकर जो भी शंकाएं सुनने को मिल रही हैं उससे अभी कोई परेशानी नहीं है। नए कृषि कानूनों की वजह से आने वाले समय में  मंडियां अप्रासंगिक हो जाएंगी। एमएसपी की बाध्यता खत्म हो जाएगी। किसान बदहाल हो जाएंगे। तमाम तरह के आकलन कानून को लेकर हैं।

मतलब सब आने वाले समय के भय और भ्रम पर आधारित है। एक तरफ विपक्ष कह रहा है कि खेती किसानी पर कॉरपोरेट वर्ल्ड का कब्जा हो जाएगा। देश गुलाम बन जाएगा। तो वहीं सरकार बार बार दावे के साथ कह रही है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। एमएसपी भी रहेगा और मंडियों की व्यवस्था भी रहेगी। लेकिन बहुत पुराने समय से चली आ रही व्यवस्था में सुधार से किसानों की किस्मत बदल जाएगी। वे ज्यादा खुशहाल हो जाएंगे। बात सही भी है जिस तरह से फल-सब्जियों के दाम और आटा, चावल, दाल व अन्य अनाजों के दाम निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। शुक्रवार की ही खबर है कि इस कोरोना काल में चावल के निर्यात में सत्तर फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कृषि उत्पादों के लेन देन में अगर इतने पैसे का खेल हो रहा है तो, देश के किसान बदहाल क्यों है?

सवाल बड़ा है और बहुत पेचीदा भी है। अब कानूनों का खेल तो सियासी पार्टियां, विशेषकर जो सरकार चला रही हैं वे ही बेहतर बता सकती हैं। कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि जहां जहां उनकी सरकार है वहां राज्य सरकारें केंद्र के कानून को निष्प्रभावी बना कर एमएसपी और मंडी व्यवस्था को अधिक बेहतर बनाएंगी। बकायदा पंजाब के अमरिंदर सिंह की सरकार ने सबसे पहले ऐसा कर भी दिया। एमएसपी की बाध्यता का कानून तक बना दिया। अगर किसी ने एमएसपी की अवमानना की तो जुर्माने और जेल की सजा का प्रावधान कर दिया गया। लेकिन बावजूद इसके पंजाब के किसानों को दिल्ली की सीमा पर लाठी खाते देख समझ में नहीं आ रहा कि कौन सही कर रहा है और कौन गलत?

इतना तो समझ आ रहा है कि देश के सबसे समृद्ध किसान अगर सड़कों पर धक्के खा रहे हैं, पुलिस की लाठियां खा रहे हैं तो कहीं कुछ गंभीर तो है। अब यह सियासी है, प्रशासनिक है या कुछ और झोल है, वक्त रहते सरकारों को साथ मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए। केंद्र सरकार का बड़ा उत्तरदायित्व है कि वह किसानों को समझाए और सियासी पार्टियों और सरकारों से बात करे।

इस बीच जिस तरह के खालिस्तानी हस्तक्षेप के संकेत बीजेपी की तरफ से दिए जा रहे हैं यह मामले को अतिगंभीर बनाते हैं। ऐसे बयान वायरल किए जा रहे हैं जिसमें सिख किसान नेता खुलेआम कह रहा है कि उसने इंदिरा गांधी को गोली मरवा दी तो मोदी क्या चीज है?

यह निसंदेह खतरनाक हैं। इस तरह के लोग यदि किसानों के बीच बैठे हैं तो इन पर फौरन सख्त एक्शन होना चाहिए। बजाए वीडियो वायरल करने के बीजेपी को कार्रवाई के लिए दबाव बनाना चाहिए।

इसी बीच में आती है दिल्ली सरकार की भूमिका। साफ लगता है कि किसानों को लेकर आम आदमी पार्टी का विजन बिल्कुल स्पष्ट नहीं है। दिल्ली के किसान परेशान हैं। एमएसपी और पराली की समस्या को लेकर समय समय पर अपनी परेशानी दिल्ली की जनता के सामने रखते रहते हैं। पहले यहां दिल्ली में तो एक ठोस मॉडल तो दे आप सरकार, फिर राष्ट्रीय सियासत में पहल करे।

दिल्ली वालों की फिक्र दिल्ली सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। उत्तरी दिल्ली के बड़े हिस्से में पिछले तीन दिनों से पीने के पानी की सप्लाई नहीं हो रही है। जनता त्राहि त्राहि कर रही है। पता करने पर जलबोर्ड की तरफ से बताया गया कि आउटर रिंग रोड पर पाइप फटने से सप्लाई बाधित है। आमतौर पर इस तरह की शिकायत का निपटारा रात भर में कर दिया जाता रहा है। लेकिन इस बार तीसरा दिन बीतने पर भी समाधान नहीं मिल सका। दिल्ली वाले परेशान हैं लेकिन इसी बीच तस्वीरें आती हैं कि दिल्ली जलबोर्ड के कर्ताधर्ता और आम आदमी पार्टी के सीनियर नेता राघव चड्डा उत्तरी दिल्ली के ही बुराड़ी ग्राउंड में पानी से भरे बड़े बड़े टैंकर लगवा रहे हैं। किसानों की सेवा से किसी को कोई परेशानी नहीं लेकिन इस तरह से तो दिल्ली वाले खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।

किसान आंदोलन के कई रूप सामने आ रहे हैं। कुछ तो किसानों के प्रति चिंता बढ़ाते हैं लेकिन कई ऐसे हैं जिन पर कई सवाल खड़े होते हैं। लेकिन इतना तय है कि देश अभी एक भयानक महामारी से जूझ रहा है। कोरोना के रूप में एक ऐसा शत्रु सामने है जिस पर विजय का कोई फॉर्मूला दुनिया में किसी के पास नहीं। बस आपसी समझदारी से इससे निपटा जा सकता है। इसमें जन भागीदारी की बड़ी भूमिका है। यह वर्तमान है, भविष्य में क्या होने जा रहा है उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं। कोरोना की वजह से दिल्ली के जिन सौ घरों में रोज मातम पसर रहा है उन्हें कोई समझा ले जाए तो तब किसी कानून का भविष्य देश को समझाए।