प्रदूषण से निपटे या पहले झगड़ा निपटाएं

दिल्ली में सर्दियों के साथ ही प्रदूषण की समस्या बढ़ती जाती है। जिसकी बड़ी वजह पास पड़ोस के हरियाणा और पंजाब के किसानों के द्वारा पराली का जलाया जाना रहा है। इस बार भी ऐसे ही संकेत मिलने लगे हैं। दिल्ली की हवा की क्वालिटी बिगड़ने लगी है। लेकिन इसे रोकने के लिए कोई सम्मिलित प्रयास करने की बजाए दिल्ली के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल सियासत साधने में लगे हैं। सबसे पहले दोनो ही दलों में इस बात को लेकर गहरा मतभेद है कि पराली जलने से उठने वाला धूंआ दिल्ली में प्रदूषण की कितनी बड़ी वजह है। कोई छोटा मोटा आदमी नहीं, बीजेपी के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर यह कहते हैं कि पराली से महज 4 प्रतिशत ही दिल्ली की हवा दूषित होती है। जबकि दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय कहते है कि यह 40 प्रतिशत तक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।

हैरानी इस बात को लेकर होती है कि यह तो हर किसी को दिख रहा है कि उधर पंजाब हरियाणा में पराली जली और इधर दिल्ली में हवा की क्वालिटी बिगड़ने लगी। पिछले दिनों लॉकडाउन की वजह से गाड़ियों और फैक्ट्रियों के बंद होने की वजह से हवा बिल्कुल साफ हो गई थी। तो अचानक आने वाले इस बदलाव को हर दिल्ली वाले ने महसूस किया। अब इसे आंकड़ों के हवाले से बहकाने की बात कोई भी करेगा तो इसे नहीं माना जा सकता। कमाल है केंद्र सरकार के सारे मंत्री और अधिकारी रहते दिल्ली में ही हैं। लेकिन बातें ऐसे करते हैं कि उन्हें इससे कोई मतलब ही नहीं है। क्यों नहीं दिल्ली, यूपी, हरियाणा और पंजाब की सरकारों को साथ मिलाकर किसी ठोस योजना पर काम करती है केंद्र सरकार?

हर साल ठीक इसी समय दिल्ली में पराली जलने से परेशानी बढ़ती है। लेकिन सरकारों की नींद तब खुलती है जब धुंआ असर दिखाने लग जाता है। आनन फानन में पहले दिल्ली सरकार जागती है और एक खास किस्म के केमिकल के छिड़काव करवाने का शोर मचाना शुरू कर देती है। जिससे पराली खेत में ही खाद में तब्दील हो जाएगी। जबकि कायदे से यह काम से कम से कम छह महीने पहले से शुरू हो जाना चाहिए। उधर से धुंआ दिल्ली की तरफ बढ़ा, इधर दिल्ली सरकार ने योजना को हरी झंडी दी।

ऐसे ही हालात पावर प्लांट को लेकर देखना को मिला। दिल्ली में चलने वाले थर्मल पावर प्लांट तो दिल्ली सरकार ने बंद कर दिए। लेकिन पास पड़ोस में चलने वाले 11 पावर प्लांट को लेकर केंद्र सरकार का ढ़ुलमुल रवैया देखने को मिला। जबकि जानकारों का मानना है कि नई तकनीक के इस्तेमाल से इससे होने वाले वायू प्रदूषण को काफी नियंत्रित किया जा सकता है। सिर्फ एक प्लांट पर इसे लगाया जा सका। सरकार चाहे तो इस पर सख्ती करके तुरंत इस समस्या का समाधान निकाल सकती है।

प्रदूषण पर गंदी सियासत का नमूना देखने को मिला नॉर्थ दिल्ली के किराड़ी इलाके में कूड़े के ढेर में किसी ने आग लगा दी। फिर वहां दिल्ली सरकार के लोग पहुंचे। दिल्ली जल बोर्ड की मदद से जल का छिड़काव किया गया। दिन भर जम कर सियासत चली। आम आदमी पार्टी की सरकार ने इसके लिए बीजेपी शासित एमसीडी पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए एक करोड़ का जुर्माना तक ठोक दिया। तो वही बीजेपी की तरफ से कहा गया कि आग आम आदमी पार्टी के लोगों ने ही लगाई और फिर पार्टी इसे मुद्दा बना कर सियासत कर रही है। अब कौन सच बोल रहा है और कौन सियासत कर रहा है कम से कम इस पर सीबीआई जांच तो होने वाली नहीं। लेकिन इतना तय है कि कूड़ें के जलने से उठने वाला जहरीला धुंआ दिन भर पास पड़ोस के लोगों की सेहत बिगाड़ता रहा।

साफ लगता है कि सरकारों का सरोकार दिल्ली के लोगों को राहत देने से पहले जम कर सियासत कर लेने का है। यही कोविड के मामले में देखने को मिला और अब पराली को लेकर हो रहा है। जबकि दिल्ली को होने वाली दिक्कत ऐसी है जिसकी चपेट में केंद्र और राज्य सरकार पर शासन करने वाली सियासी पार्टियों के सारे के सारे शीर्ष लोग सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। लेकिन सियासी लाभ का लालच इन दोनों को ही जान पर खेलने को मजबूर कर देता है।