तो क्या लाठी से हांका जाएगा लोकतंत्र ?

दिल्ली की सहरद पर जो दिन भर चला उसे कैसे जायज ठहराया जाए..लोकतंत्र की मर्यादा के तहत हुआ कैसे समझाया जाए ? उत्तर प्रदेश राज्य में कौन प्रवेश करेगा..कैसे प्रवेश करेगा..कब प्रवेश करेगा इसे राज्य के मुख्यमंत्री तय करेंगे ? आपसे पूछा जाएगा…आपको जवाब देना ही होगा। हाथ में लाठी लिए पुलिस वालों को पूछने का अधिकार जो दे रखा है मुखिया ने। तस्वीरें साफ बता रही हैं कि बेशक आप जवाब दे रहे हो..सुनना है समझना है इसकी जरूरत है भी या नहीं…यह भी पुलिस अधिकारी की मर्जी पर है। आप जरा भी जबरदस्ती नहीं कर सकते..ऐसा करने पर आप पर लाठी भांजी जा सकती है। आप को धक्का दिया जा सकता है। आप गिर सकते हैं। आपको चोट पहुंचाई जा सकती है। आप कौन हैं…क्यों जा रहे हैं…कैसे जा रहे हैं..इससे उन्हें क्या मतलब। उन्हें तो बस उपर से आए फरमान को मानना है।

सही भी है सीएम तो सूबे का मुखिया है। लोकतंत्र की व्यवस्था तो यही कहती है। लेकिन कौन समझाए इन्हें कि लोकतंत्र ने जितना महत्व सत्ता पक्ष के मुख्य नेता को दिया है उतना ही महत्व विपक्ष के मुख्य नेता को भी दिया है। आंकड़ों की बाजीगरी नहीं बतियाइए…राहुल गांधी की पहचान नहीं दबाइए। आज की तारीख में देश में विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा राहुल गांधी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता। सही अर्थों में बात की जाए तो सिस्टम उनसे सवाल नहीं पूछ सकता। उनके सवाल आपको परेशान कर रहे हैं तो यह आपकी समस्या है। ऐसी क्या आफत आ गई कि नोएडा से डेढ़ सौ किलोमीटर से अधिक दूर हाथरस जाने की बात से आपके हाथ पांव फूल गए।

उनका सवाल पूछना समस्या कतई नहीं हो सकता। वे ठीक तरीके से जाए इसकी व्यवस्था करना सत्ता पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी है। पुलिस की लाठी के बल पर उन्हें जबरन रोकना किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता। जिस तरह की अभद्रता पुलिस के द्वारा विपक्ष के सबसे बड़े नेता के साथ..एडीसीपी रणविजय सिंह जैसे सीनियर अधिकारी की मौजूदगी में की गई..लोकतांत्रिक मर्यादा पर गहरा आघात है।

देश में मानों परंपरा सी चल पड़ी है। सूबे की सत्ता से देश के ही दूसरे हिस्से का आदमी सवाल नहीं पूछ सकता। पुलिस बल का बेजा इस्तेमाल शुरू कर देती है सूबे की सत्ता। ऐसा लगने लगता है कि निजी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है सीएम ने या फिर सत्ताधारी दल ने। अभी अभी देश देख चुका है किस तरह का रवैया महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने सुशांत सिंह राजपूत मामले में अपनाया। ऐसा लगने लगा कि लोकशाही की जगह सेमी राजशाही चल रही है। देश के इस हिस्से में…सुशांत की मौत पर सवाल उठाना मानो सूबे के शहंशाह को नहीं पसंद आया। गुस्से में उन्होंने क्या क्या किया बताने की जरूरत नहीं…देश जानता है।

महाराष्ट्र हो या यूपी..सूबे की सत्ता को समझना होगा कि वो इलाका उनकी जागीर नहीं है। आप क्या चाहते है इसे जनता के सामने रखना होगा। फिर विपक्ष या आपके विरोधी क्या करते हैं उस पर ऑलरेडी जनता की नजर है। लेकिन आप कुछ करने नहीं दीजिएगा…लाठी भंजवा दीजिएगा..तो देश की जनता तो भरमा ही जाएगी..लोकतंत्र की गरिमा तार तार हो जाएगी..और यदि देश की जनता गरमा गई तो उसकी तपिश में कौन कब कैसे झुलसेगा..इसमें वक्त लगता है लेकिन समझ सबको आ जाता है।