सैलरी पर सड़ांध वाली सियासत

एमसीडी के अधिकारी और कर्मचारी जिनके उपर दिल्ली शहर को साफ सुथरा बनाए रखने की जिम्मेदारी है, ताकि कोरोना वायरस अपने पैर न पसार सके। अपना और अपने परिवार की परवाह न करते हुए इन्होंने इस संकट के घड़ी में काम तो किया है। लेकिन उस श्रम की परवाह सत्ता में बैठे नेताओं को नहीं है। धरने पर बैठने को मजबूर हैं सब के सब। यही हालात एमसीडी के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और शिक्षकों की भी है। महामारी के इस दौर में भी सभी सैलरी न मिलने से परेशान हैं। साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों के शिक्षक, कर्मचारी और छात्र फंड न मिलने से परेशान हैं, जिसे दिल्ली सरकार रिलीज नहीं कर रही है।

सरकारी सेवा का संबंध सीधे तौर पर लोकसेवा से है। आम जनता से जुड़ा काम जिसे सरकारी कर्मचारी करते हैं। तमाम तरह की शिकायतें हो सकती हैं इन लोकसेवकों से लेकिन इनकी आवश्यकता, समाज में इनकी अनिवार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता। विशेषकर तब जब देश भीषण स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा हो। अनिवार्य सरकारी सेवा से जुड़े लोगों ने सराहनीय काम किया है। इनके भरोसे ही देश आज भी कोरोना से लड़ाई लड़ा रहा है।

बावजूद इसके देश की राजधानी में इनकी सैलरी पर जिस तरह की सियासत देखने को मिल रही है घोर निराशा पैदा करती है। सैलरी का यह सियासी संकट यूं तो काफी पुराना है लेकिन इस महामारी के दौर में इसका रूप घृणित लगने लगा है। जब शहर को साफ रखने की सख्त जरूरत है उस समय पर सिविक सेंटर के सामने एमसीडी के कर्मचारी अपनी चार महीने की बकाया सैलरी के लिए धरने पर बैठे हैं। बताइए जरा कैसे होगी शहर की साफ सफाई। बेमन से कर्मचारी काम कर रहे कर्मचारी कैसे देश को कोरोना जंग में विजयी बनाएंगे।

एक तरफ तो कर्मचारी अपना और अपने परिवार का पेट पालने की चिंता में हैं। तो ऐसे समय में उन्हें समाधान देने की बजाए दिल्ली की सियासी पार्टियां राजनीति चमकाने में लगी हैं। सत्ता में हिस्सेदारी की खींच-तान चरम पर है। आम आदमी पार्टी बार बार एमसीडी के कर्मचारियों के पक्ष में आवाज बुलंद कर रही है। पार्टी के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक ऐलान कर चुके हैं कि अगर बीजेपी एक हफ्ते में कर्मचारियों को सैलरी नहीं देती है तो उनकी पार्टी कर्मचारियों के समर्थन में धरना प्रदर्शन करेगी। दुर्गेश कई बार बीजेपी से एमसीडी से इस्तीफा देने की मांग कर चुके हैं। आप पार्टी इस सैलरी संकट के लिए भ्रष्ट बीजेपी नेताओं को जिम्मेदार बताती है।

तो वहीं दूसरी तरफ एमसीडी पर लंबे समय से कब्जा जमाए बैठी बीजेपी इसके लिए आप सरकार को ही जिम्मेदार ठहराती है। उसका कहना है कि केजरीवाल सरकार एमसीडी को पूरा फंड नहीं दे रही। जब आप पार्टी बीजेपी को एमसीडी के कर्मचारियों के मुद्दे पर घेर रही है, जबरदस्त तरीके से हमलावर है तो ऐसे समय में समाधान की दिशा में काम करने की बजाए बीजेपी केजरीवाल सरकार को दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली सरकार पोषित कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों की सैलरी संकट पर घेरने की तैयारी में दिख रही है।

दिल्ली प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने उपराज्यपाल से मिल कर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। उन्हें ज्ञापन देकर कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों के लिए आंवटित फंड दिल्ली सरकार रिलीज नहीं कर रही है। जिससे शिक्षकों और कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिल रही है, साथ ही गरीब छात्र भी सहायता राशि नहीं मिलने की वजह से मुसीबत में हैं।

और तो और बीजेपी एमसीडी कर्मचारियों की सैलरी के लिए आगामी सोमवार को दिल्ली सरकार के खिलाफ सिविक सेंटर से सचिवालय तक पैदल मार्च निकालने में जुट गई है।

साफ दिखता है कि दोनों ही पार्टियां समाधान की बात नहीं कर रही हैं। सभी एक दूसरे के खिलाफ सियासी दांव पेच में उलझे हैं। भ्रम फैला कर केवल सियासी लाभ लेने की जुगत में जुटे हैं। स्वास्थ्य संकट के बीच सैलरी संकट की गंभीरता को कोई समझने को तैयार नहीं। यहां तक कि हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद कर्मचारियों को कम से कम इस दौर में ही, राहत देने की मंशा में नहीं कोई नहीं दिख रहा है। सियासी हमले तेज हैं, कर्मचारी सिर पकड़ कर बस धरने पर बैठने को मजबूर हैं। लोकतंत्र की ऐसी तस्वीर देश और विशेषकर दिल्ली के आम जन की चिंता बढ़ाती है।