वो दिल्ली तक बात पहुंचा कर चली गई

हाथरस की निर्भया

सोचना अब देश को है..आखिर कब तक कितनी ही निर्भया इस तरह निर्दयी दरिंदे निपटाते रहेंगे..और देश मोमबत्ती जलाता रहेगा। सब तो हो चुका है निर्भया फंड बना..फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था बनी..वन स्टॉप सेंटर बन चुका। लेकिन हालात संभलते नहीं..लगाम है कि लगता नहीं इन दरिंदों पर। देश की कमान दिल्ली के हाथों में है। व्यवस्था बना कर आखिर क्यों लापरवाह हो जाती है दिल्ली। यह तो दुनिया जानती है कि किस तरह दिल्ली के निर्भया कांड के बाद आए सामाजिक और सियासी उबाल ने ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम तरह के कानूनी ताने बाने को तैयार किया था। हालात साफ बता रहे हैं कि सिस्टम का खौफ दरिंदों के दिलो दिमाग पर डालने में सारी व्यवस्थाएं नाकाम रही हैं।

नहीं तो जुर्रत देखिए दरिंदगी से रेप और फिर जुबान न खुले तो जीभ काट दी। उससे भी मन नहीं माना तो गर्दन तोड़ दी..रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। चार गुनाहगारों ने मिल कर ये सब घृणित काम किया। ये उन सब की मानसिक दशा को दिखाता है। किसी तरह का कोई डर भय नहीं। सब मैनेज कर लेंगे। बात तो बाद में सही भी लगी। जिस तरह से लड़की के शरीर की ऐसी हालत देखने के बाद भी पुलिस ने महज छेड़छाड़ की धाराओं के तहत ही केस दर्ज कर रखा था। अगर लड़की को 9 दिनों के बाद होश नहीं आता तो सब शांति से मैनेज हो ही चुका होता।

दिल्ली की निर्भया की मां

यूपी बिहार के समाज में सियासी लाभ के लालच में बदस्तूर जारी बौद्धिक और चारित्रिक पतन को इस तरह का मामला झट से सामने रख देता है। अब इसमें भी जाति का एंगल निकाला जाने लगा है। आखिर क्यों..? बात ही इस तरह की क्यों करने लग जाता है समाज..अपराधी तो बस अपराधी है..जांच हो..सजा हो..। जात जमात की बात मंशा को नंगा कर देती है। जो भी अपराध में जात तलाश रहा है उस पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। गुनाहगारों को बचाने की कोशिश या फिर इस तरह की घृणित घटना पर किसी भी तरह की सियासत की तो नौबत ही नहीं आनी चाहिए। इसमें तो सीधी तरह से सारा मामला फांसी पर खत्म होना चाहिए, वो भी समय सीमा के अंदर।

हौसला हाथरस की उस बहादुर लड़की का देखिए..जिसने 9 दिनों के बाद होश में आकर यूपी के पुलिस प्रशासन की पोल खोल कर रख दी..फिर दिल्ली आकर अपनी बात रख..देश की राजधानी शहर की सोच और संवेदनाओं को झकझोर कर…दुनिया छोड़कर चली गई।

अब सोचना है हमको..आपको..समाज को..पूरे देश को..और क्या करें कि इस तरह निर्भया की निर्मम हत्या पर पूरी तरह से लगाम लगे? आठ साल कम नहीं होते। सोचना यह भी होगा कि सिस्टम में इस तरह की घटनाओं पर ठंडा रिस्पॉन्स देने वाले अधिकारियों पर भी क्यों न सख्त कार्रवाई की जाए…सिस्टम में सुप्त पड़ी संवेदनाओं को कैसे सुलगाया जाए..?