बारिश का बहाना..कुछ समझना समझाना

19 अगस्त..अभी चंद चार दिन ही तो बीते..राष्ट्रवाद के शाट्स लगा कर देश ने झूमना बंद भी नहीं किया था कि..कुदरत ने बड़ा ऐलान किया..राजधानी दिल्ली में किया..ताकि इसकी गूंज पूरे देश में सुनी जा सके..करने को तो रात में भी किया जा सकता था..लेकिन नहीं दिन में किया..पहले अंधेरा किया..ताकि लोग घरों की..गाड़ियों की..तमाम जगह की बत्तियां जला सके..देख सके..समझ सके कि..देश आजाद नहीं। अंग्रेज चले गए तो क्या..हांके जाने पर चलने की आदत गई नहीं। गुलाम मानसिकता अपने दम पर महानगरी मुंबई..दिल्ली के नालों की लाइन लेंथ एक इंच ठीक नहीं कर पाई। देश समझे चिंतन करे..मंथन करे…ये कैसी आजादी…आप घरों से नहीं निकल सकते…निकले तो काम पर नहीं पहुंच सकते…नाली में बह जाने वाला पानी शहर को बंधक बना ले। क्या देश की आर्थिक राजधानी..क्या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र..सबका हाल एक समान।

ये तब हो रहा है जब कोई आंधी तूफान नहीं आया..बरसा है तो बस आहिस्ता आहिस्ता पानी। दिन भर बरसता रहा पानी..डूबता गया शहर..लोग डूबे..गाड़ियां दूकानें डूबीं। लेबल देखिए..पानी का नहीं अपना..कहां खड़े हैं आप..किस स्तर की हैं आपकी व्यवस्थाएं..जो नाली से पानी नहीं बहा सकती। केवल और केवल बात बयानी की सियासत। व्यवस्था की बात तो मानों देश ने स्वीकार ली हो..इस पर बात नहीं करेंगे। जाति धर्म के नाम पर जान ले लेंगे..दे देंगे लेकिन जवाब नहीं मागेंगे..सिस्टम से..सरकार से..ये गुलामी नहीं तो और क्या है ? पता नहीं कि हार बैठे हैं या मान बैठे हैं कि ये हमारे बस की ही नहीं। वही नकली अंग्रेजी टाईप आईएएस वाली व्यवस्था है..आईआईटी है..ट्रिपल आई टी भी है..जहां देश की सेवा करने वाले सेवक नहीं विदेशियों की नौकरी करने वाले नौकर पैदा हो रहे हैं। फिर क्यों न माना जाए की गुलामी न सही देश को हांकने वाला तो चाहिए ही। फिर इंतजार ही क्यों न किया जाए कि एक दिन अंग्रेज जैसा ही कोई आएगा..देश की नाली से पानी बहाएगा..!