जबरिया क्वारंटाइन का मुहर देश को मुंह चिढ़ा रहा है !

जेआरडी टाटा जैसे लोग बेवकूफ नहीं थे..जो साल पचपन में बॉम्बे सिटीजन कमिटी बना कर मुंबई को अलग राज्य बनाने की मांग कर रहे थे। प्रधानमंत्री नेहरू भी दिल से मुंबई को केन्द्र शासित राज्य बनाए रखना चाहते थे। उस समय मराठी हंगामेबाजों के आगे देश का नेतृत्व झुका और आज उसका खामियाजा सारा देश भुगतने को बाध्य है। आज मुंबई का चरित्र हो चला है..हर मामले के आगे मराठी अस्मिता का प्रश्न खड़ा हो जाता है।

सुशांत सिंह सुसाइड केस की जांच के नाम पर जिस तरह का ड्रामा महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार कर रही है..शायद इसी बात का डर तब के बड़े कारोबारियों को रहा होगा। सारे मामले को शिवसेना क्षेत्रीय स्तर पर निपटाना चाहती है। बॉलीवुड के लॉबीबाजों का दबाव शिवसेना चित्रपट शाखा, फिल्म ट्रेड एसोसिएशन के माध्यम से सीधे शिवसेना सरकार पर हावी बताया जा रहा है।

जबकि स्पष्ट है कि सुशांत का मामला महज बिहार और महाराष्ट्र का मामला है ही नहीं..सुशांत के चाहने वाले पूरे देश दुनिया में फैले हैं..जो बस अपने चहेते सितारे की मौत की निष्पक्ष जांच चाहते हैं..।

तो क्यों न ये माना जाए कि एक बार फिर मुंबई के महानगरीय चरित्र पर प्रश्न चिह्न उठा रहा है सुशांत मौत की सीबीआई जांच का मामला। कौन समझाए इन मराठियों को कि जहां के सरदार बने बैठे हैं वे आज..उसका इतिहास ही शुरू होता है मगध साम्राज्य से, जिसके अधीन था समुद्र का ये किनारा। फिर पुर्तगालियों ने इसे फैक्टरी बैठाने के लिए बसाया..पता भी है क्या कहते थे पुर्तगाली इसे उस समय..बॉम बहीया..यानी एक अच्छा खाड़ी प्रदेश..उसके बाद 1626 में ये अंग्रेजों के कब्जे में आया..किंग चार्ल्स द्वितीय ने दहेज में मिले इस शहर को ईस्ट इंडिया कंपनी को 10 पाउंड सोना सलाना किराये पर दे दिया….ऐसा तो इतिहास है शहर का फिर..बिहारियों ने सीमा खींची..पुर्तगालियों ने जमाया..अंग्रेजों ने बसाया..बताइए कहां हैं मराठा..कहां है मराठी अस्मिता..।

यहां तक कि साल पचपन..साठ में भी जब जेआरडी टाटा जैसे लोग स्वतंत्र बंबई की मांग उठा रहे थे, भाषा के आधार पर क्षेत्रों का गठन हो रहा था, उस समय भी यहां मराठी बोलने वालों से ज्यादा बहुभाषिए लोग रहते थे…कौन समझाए इन्हें..अब वो वक्त नहीं है..मीडिया भी नहीं..सोशल मीडिया का जमाना है..सारा देश उठ खड़ा हो जाता है..मामला तूल पकड़ने पर है…उन्नीस सौ साठ से भी जोड़ो तो..पिछले साठ सालों में मुंबई के नालों में बारिश का पानी तो मैनेज नहीं कर सके..जबरिया जो बिहार पुलिस के जांच अधिकारी को क्वारेंटाइन का मुहर मार सिकंदर बने फिर रहे हैं..मुंबई को केंद्र शासित राज्य बनाने की मांग इस बार उठी तो संभाले नहीं संभलेगा..!!